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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
हैं । चक्रेश्वरी, अम्बिका एवं पद्मावती यक्षियों के अतिरिक अन्य के निरूपण में सामान्यतः परम्परा का निर्वाह नहीं किया गया है। चक्रेश्वरी एवं पद्मावती के निरूपण में भी परम्परा का निर्वाह कुछ विशिष्ट लक्षणों तक ही सीमित है। शान्ति एवं मुनिसुव्रत की यक्षियां क्रमश: ध्यानमुद्रा (योगासन) में और लेटी हैं। अन्य यक्षियां ललितमुद्रा में हैं। बीस देवियां पायोंवाले आसन पर और शेष चार पद्म पर विराजमान हैं। कुछ यक्षियों के निरूपण में ब्राह्मण एवं बौद्ध देवकुलों की देवियों के लाक्षणिक स्वरूपों के अनुकरण किये गये हैं। शान्ति, अर एवं नेमि की यक्षियों के निरूपण में क्रमशः गजलक्ष्मी, तारा (बौद्ध देवी) और त्रिमुख ब्रह्माणी के प्रभाव स्पष्ट हैं।' २४ यक्षियों के अतिरिक्त इस गुफा में चक्रेश्वरी एवं रोहिणी की दो अन्य मूर्तियां (द्वादशभुज) भी हैं।
कटक के जैन मन्दिर में कई मध्ययुगीन जिन मूर्तियां हैं। इनमें ऋषभ और पार्श्व की द्वितीर्थो और भरत एवं बाहुबली से वेष्टित ऋषभ की मूर्तियां उल्लेखनीय हैं । क्योंझर के पोट्टासिंगीदी और बालेश्वर के चरम्पा ग्राम से आठवीं से दसवीं शती ई० के मध्य की ऋषभ, अजित, शान्ति, पार्श्व, महावीर एवं अम्बिका की मूर्तियां मिली हैं, जो सम्प्रति राज्य संग्रहालय, उड़ीसा में हैं।२ बंगाल
पुरुलिया, बांकुड़ा, मिदनापुर, सुन्दरबन, राढ़ एवं बर्दवान के पुरातात्विक सर्वेक्षण से ल० आठवीं से बारहवीं शती ई. के मध्य की जैन प्रतिमाविज्ञान की प्रचुर सामग्री मिली है। बंगाल की जैन मूर्तियां दिगंबर सम्प्रदाय से सम्बद्ध हैं (चित्र ९-११, ६८)। बंगाल में जिनों, चौमुखी, द्वितीर्थी, सर्वानुभूति, चक्रेश्वरी, अम्बिका, सरस्वती और जैन युगलों की मूर्तियां मिली हैं। जिनों में ऋषभ एवं पार्श्व की सर्वाधिक मूर्तियां हैं। लटों से युक्त ऋषभ कभी-कभी जटामुकुट से शोभित हैं। ऋषभ एवं पाव के बाद लोकप्रियता के क्रम में शान्ति, महावीर, नेमि एवं पद्मप्रम की मूर्तियां हैं । जिन मूर्तियों में लांछन सदैव प्रदर्शित हैं पर सिंहासन, धर्मचक्र, अशोकवृक्ष एवं दुन्दुभिवादक के चित्रण नियमित नहीं रहे हैं । जिनों की कायोत्सर्ग मूर्तियां ही अधिक हैं। जिन मूर्तियों में यक्ष-यक्षी का निरूपण नहीं हुआ है। जिन मूर्तियों के परिकर में नवग्रहों एवं २३ या २४ लघु जिन आकृतियों के चित्रण इस क्षेत्र में विशेष लोकप्रिय थे। परिकर की लघु जिन आकृतियां सामान्यत: लांछनों से युक्त हैं। जिन चौमुखी मूर्तियों में अधिकांशतः चार स्वतन्त्र जिन चित्रित हैं।
सुरोहर ( दिनाजपुर, बांगलादेश ) से ध्यानस्थ ऋषभ की एक मनोज्ञ मूर्ति (१०वीं शती ई०) मिली है (चित्र ९)। मूर्ति के परिकर में लांछनों से युक्त २३ लघु जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । राजशाही जिले के मण्डोली से मिली एक ऋषभ मूर्ति में नवग्रह एवं गणेश निरूपित हैं। राजशाही संग्रहालय में बंगाल की अम्बिका एवं जैन युगल मूर्तियां भी संकलित हैं । बांकुड़ा में पारसनाथ, रानीबांध, अम्बिकानगर, केन्दुआ, बरकोला, दुएलभीर, बहुलर, और पुरुलिया
१ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १२९-३३ २ जोशी, अर्जुन, 'फर्दर लाइट ऑन दि रिमेन्स ऐट पोट्टासिंगीदी', उ०हिरिज०, खं० १०, अं० ४, पृ० ३०-३२;
दश, एम० पी०, 'जैन एन्टि क्विटीज फाम चरंपा', उ०हिरिज०, खं० ११, अं० १, पृ० ५०-५३ ३ जिन चौमुखी का उत्कीर्णन अन्य किसी क्षेत्र की तुलना में यहां अधिक लोकप्रिय था। ४ केवल एक जिन मूर्ति (ऋषभ) में यक्ष-यक्षी का अंकन हआ है--मित्र, कालीपद, 'आन दि आइडेन्टिफिकेशन ऑव
ऐन इमेज', इं०हि ०क्वा०, खं० १८, अं० ३, पृ० २६१-६६ ५ गांगुली, कल्याणकुमार, 'जैन इमेजेज़ इन बंगाल', इण्डि० क०, खं० ६, पृ० १३८-३९ ६ सुमति एवं सुपार्श्व के साथ पशु एवं पद्म लांछनों का अंकन परम्पराविरुद्ध है। ७ जैन जर्नल, खं० ३, अं० ४, पृ० १६१ ८ बांकुड़ा से पार्श्व की सर्वाधिक मतियां मिली हैं-चौधरो, रबीन्द्रनाथ, 'आर्किअलाजिकल सर्वे रिपोर्ट बांकुड़ा डिस्ट्रिक्ट', माडर्न रिव्यू, खं० ८६, अं० १, पृ०२११-१२
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