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उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ]
मूर्तियों का निर्माण हुआ । राजस्थान में भी महाविद्याओं का चित्रण ही सर्वाधिक लोकप्रिय था। महाविद्याओं की प्राचीनतम मूर्तियां इसी क्षेत्र में उत्कीर्ण हुईं । इस क्षेत्र के भी सर्वाधिक लोकप्रिय यक्ष-यक्षी युगल सर्वानुभूति एवं अम्बिका ही थे । जिनों के जीवनदृश्यों, सर्वानुभूति एवं ब्रह्मशान्ति यक्षों, चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावतो, सिद्धायिका यक्षियों और सरस्वती, शान्तिदेवी, जीवन्तस्वामी महावीर, गणेश एवं कृष्ण की भी इस क्षेत्र में प्रचुर संख्या में मूर्तियां उत्कीर्ण हुईं। जिनों के लांछनों के चित्रण के स्थान पर पीठिका लेखों में जिनों के नामोल्लेख की परम्परा ही लोकप्रिय थी । केवल ऋषभ एवं पार्श्व के साथ क्रमशः जटाओं एवं सर्पफणों का प्रदर्शन हुआ है । राजस्थान में इन्हीं दो जिनों की सर्वाधिक मूर्तियां उत्कीर्ण हुई । इस क्षेत्र में श्वेताम्बर स्थलों का प्राधान्य है । केवल भरतपुर, कोटा, बांसवाड़ा, अलवर एवं बिजौलिया आदि स्थलों से दिगम्बर मूर्तियां मिली हैं ।
ओसिया
महावीर मन्दिर - ओसिया (जोधपुर) का महावीर मन्दिर (श्वेतांबर) राजस्थान का प्राचीनतम सुरक्षित जैन मन्दिर है । महावीर मन्दिर के समक्ष एक तोरण और वलानक ( या नालमण्डप ) है । वलानक के पूर्वी भाग में एक देवकुलिका संयुक्त है । महावीर मन्दिर के पूर्व और पश्चिम में चार अन्य देवकुलिकाएं भी हैं । वलानक में ९५६ ई० (वि०सं०१०१३) का एक लेख है । लेख, स्थापत्य एवं शिल्प के आधार पर विद्वानों ने महावीर मन्दिर को आठवीं और नवीं शती ई० का निर्माण माना है । ९५६ ई० के कुछ बाद ही वलानक से जुड़ी पूर्वी देवकुलिका (१० वीं शती ई०) निर्मित हुई । महावीर मन्दिर के समीप की पूर्वी और पश्चिमी देवकुलिकाएं एवं तोरण (१०१८ ई०) ग्यारहवीं शती ई० में बने । ७ जैन प्रतिमाविज्ञान के अध्ययन की दृष्टि से महावीर मन्दिर की महाविद्या मूर्तियां विशेष महत्व की हैं । ये महाविद्या की आरम्भिक मूर्तियां हैं । महाविद्याओं के अतिरिक्त सर्वानुभूति एवं पार्श्व यक्षों, और अम्बिका एवं पद्मावती यक्षियों की मी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। साथ ही द्विभुज अष्ट-दिक्पालों, सरस्वती, महालक्ष्मी और जैन युगलों की भी मूर्तियां मिली हैं । महावीर मन्दिर के समान ही देवकुलिकाओं पर भी महाविद्याओं, सर्वानुभूति यक्ष, अम्बिका यक्षी, गणेश और जीवन्तस्वामो महावीर की मूर्तियां हैं।
महावीर मन्दिर की द्विभुज एवं चतुर्भुज महाविद्याएं वाहनों से युक्त हैं। यहां प्रज्ञप्ति, नरदत्ता, गांधारी, महाज्वाला, मानवी एवं मानसी महाविद्याओं के अतिरिक्त अन्य सभी महाविद्याओं की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । महाविद्याओं के निरूपण में सामान्यतः बप्पमट्टि की चतुर्विंशतिका के निर्देशों का पालन किया गया है । मन्दिर में महालक्ष्मी (१), पद्मावती (१),
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१ जैन, के० सी०, जैनिजम इन राजस्थान, शोलापुर, १९६३, पृ० १११ : हमने अपने अध्ययन में लूणवसही (१२३०ई०) की शिल्प सामग्री का भी उल्लेख किया है क्योंकि विषयवस्तु एवम् लाक्षणिक विशेषताओं की दृष्टि से वसही की सामग्री पूर्ववर्ती विमलवसही (१०३१ ई०) की अनुगामिनी है ।
२ ये मूर्तियां ओसिया के महावीर मन्दिर पर हैं ।
३ ढाकी, एम० ए०, 'सम अर्ली जैन टेम्पल्स इन वेस्टर्न इण्डिया', म०जै०वि०गो०जु०वा०, बंबई, १९६८, पृ० ३१२ ४ नाहर, पी० सी०, जैन इन्स्क्रिप्शन्स, भाग १, कलकत्ता, १९१८, पृ० १९२ ९४, लेख सं० ७८८
५ भण्डारकर, डी० आर०, 'दि टेम्पल्स ऑव ओसिया', आ०स०ई०ए०रि०, १९०८-०९, पृ० १०८; प्रो०रि०आ०स०ई०, वे०स०, १९०७, पृ० ३६-३७; ब्राउन, पर्सी, इण्डियन आर्किटेक्चर, बम्बई, १९७१ (पु० मु०), पृ०१३५; कृष्ण देव, टेम्पल्स ऑव नार्थ इण्डिया, दिल्ली, १९६९, पृ० ३१; ढाकी, एम० ए०, पु०नि०, पृ० ३२४-२५
६ त्रिपाठी, एल० के० एवोल्यूशन ऑव टेम्पल आर्किटेक्चर इन नार्दर्न इण्डिया, पीएच्० डी० को अप्रकाशित
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थीसिस, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, १९६८, पृ० १५४, १९९-२०३
७ भण्डारकर, डी० आर०, पु०नि०, पृ० १०८; ढाकी, एम० ए०, पू०नि०, पृ० ३२५-२६
८ पर गौरी गोधा के स्थान पर वृषभवाहना है । गजारूढ़ वज्रांकुशी की भुजाओं में ग्रन्थ के निर्देशों के विरुद्ध जलपात्र एवं मुद्रा प्रदर्शित हैं । ग्रन्थ में वस्त्र एवं अंकुश के प्रदर्शन का निर्देश है ।
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