Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय है, जनता उसको किस रूप-प्रारूप में याद करती है—यह महत्त्वमंडित है. इस निकष के आधार पर किसी भी व्यक्तित्व का अंकन ही खरा अंकन है. इस महाकसौटी पर उत्तीर्ण होने वाले कनक की शुद्धि असंदिग्ध है. लिखने को तो किसी के बारे में कुछ भी लिखकर प्रचारित किया जा सकता है, परन्तु ऐसा लेखन जिज्ञासुओं के जीवन में परिवर्तन नहीं ला सकता.
बड़ा कौन ?:
बड़ा व्यक्ति कौन है ? जिस का नाम बड़ा हो वह बड़ा नहीं, जिसका काम बड़ा होता है वह महान् है. जीवनकाल में मनुष्य के बड़प्पन को नापने का तरीका-उसने काम क्या किया और कैसे किया-यह है. उसके स्वर्गवासी हो जाने पर उसके गुरुपन की पहचान का तरीका-उसकी स्मृति में पीछे से क्या होगा, उसकी अपूर्ण भावना की परिपूर्ति किस प्रकार होगी-यह है !
उनका जन्म :
पूज्य मुनि श्रीहजारीमलजी महाराज की माता नन्दूबाई धन्य-धन्य हो गई थी, जिस दिन पुत्र 'हजारी' ने जन्म लिया था. पिता का पारिवारिक परिस्थितिवश अतृप्त पितृत्व भी पुत्रजन्म से पुलक उठा था, जब छोटे-छोटे हाथ हिलाते, पैर पटकते,—मोतीलालजी मुणोत ने वीरपुत्र हजारी को प्रथम बार देखा था. वसन्त का मन-भावना मौसम ! शीत की बिदाई और नैसर्गिक सुषमा का आगमन ! कल्पना करते ही मन अलौकिक उल्लास से भर उठता है. ऐसी ही उस उल्लासमयी वसंत पंचमी' को नन्दूबाई, वात्सल्य में भीग गई थीं. अपनी कूख को सराहने लगी. दो-दो पुत्रोंकी जुदाई भूल गई–मस्तिष्क में नाना कल्पनाओं के वाचारहित शब्दचित्र, बने, बिगड़े, उभरे और मिटे !
माता-पिता : अन्य जन :
पूज्य महामुनि के पिता दो भाई थे. गाँव के शब्दोच्चारण के अनुसार मोतीजी और पिथाजी. इनका सुसंस्कृत रूप मोतीलाल मुणोत और पृथ्वीचन्द्र मुणोत--होता है. पृथ्वीचन्द्रजी बड़े थे. मोतीलालजी, हजारीमलजी सहित तीन पुत्र और एक पुत्री के पिता थे. हजारी के बड़े भाई, मध्यप्रदेश के प्रवेशद्वार 'जावद' में एक निकट के परिवार में दत्तक पुत्र के रूप में रहने लगे थे. मझले को भी क्या अँची कि वे भी बड़े के पास ही रहने लगे थे. पिता का स्नेह किस पुत्र-पात्र में स्थान पाए? उन्होंने अपनी ममता को पुत्री किशनी बाई में केन्द्रित कर समत्व-साधना प्रारम्भ की. समत्व-साधना के प्रतिफल में से एक दिन, जनक-जननी के ममत्वकेन्द्र चरित्राधार 'हजारी' अवतरित हुए. पिता और माता ने उन्हें मात्र अपना ही हजारी मानने का स्वरिणम स्वप्न देखा था. पर दोनों को ही पता नहीं था कि हजारी मात्र उन्हीं की ममता का केन्द्र रहेगा या जन-जन का पूज्य और श्रद्धा का आधार बनेगा.
पिता की स्नेहधारा :
संसार में स्थायित्व के नाम पर क्या स्थिर है ? कुछ भी नहीं ! स्नेह और ममत्व भी बहकाए और बँटाए बँट जाते हैं. स्नेह का स्रोत एक दिशा में बहते-बहते दूसरी दिशा में बहने लगता है. पिता का सम्पूर्ण स्नेह, किशनी में केन्द्रित था. पुत्र के आते ही पिता का स्नेह पुत्र पर आधारित हो गया. पिता घर से बाहर प्रतिपल श्रम करने लगे. मस्तिष्क से पुत्र हजारी के सुखी व शिक्षित करने के स्वप्नचित्रों में रंग भरने लगे. घर में नन्दू और किशनी हजारी की किल्लोल और
१. सं० १९४३. डांसरिया ग्राम (मेवाड़)
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