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गुणस्थानक्रमारोह.
अब रहा स्वश्रेणीगत, सो जीस जीवने उपशम गुण श्रेणी प्राप्त की है उसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धियोंके उपशमित होजानेपर वह सम्यक्त्व प्राप्त होता है । अन्तरकरण और स्वश्रेणीगत यह दो प्रकारका औपशमिक सम्यक्त्व सास्वादन नामक दूसरे गुणस्थानका मूल कारण समझना चाहिये ॥
अब सास्वादन गुणस्थानका स्वरूप दो श्लोकोंद्वारा कथन करते हैंएकस्मिन्नुदिते मध्याच्छान्तानन्तानुबन्धिनाम् । आद्यौपशमिकसम्यक्त्वशैलमौले परिच्युतः ॥११॥ समयादावलीषट्कं, यावन्मिथ्यात्त्वभूतलम् । नासादयति जीवोयं, तावत्सास्वादनो भवेत् ॥१२॥
॥ युग्मम् ॥ श्लोकार्थ-शान्त हुए हुए अनन्तानुवन्धियों में से एककाभी उदय होनेपर प्रथम औपशमिकसम्यक्तवरूप पर्वतके शिखरसे यह जीव पतित हो जाता है । । एक समयसे लेकर छः आवली पर्यन्त जब तक मिथ्याखभूतलको प्राप्त न करे तब तक सास्वादन गुणस्थान होता है। - व्याख्या-औपशमिकसम्यक्त्वको वमन करता हुआ जीव शान्त किये हुए अनन्तानुबन्धिकषायोमें से एककाभी उदय भाव होनेसे प्रथम औपशमिकसम्यक्त्वरूप पर्वतसे नीचे गिरता है। गिरते समय कालसे लेकर छः आवलीकाल पर्यन्त यावन्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त करते समय तक जो मध्यका समय है वह सास्वादन गुणस्थानका समय समझना चाहिये । यहाँपर कोई मनुष्य यह प्रश्न कर सकता है कि व्यक्तमिथ्यात्वबुद्धिकी प्राप्तिरूप प्रथम गुण