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(४०) गुणस्थानकमारोह. सर्वद्रव्य याने छः ही द्रव्योंका समावेश होता है और बाकी तीसरे तथा चौथे व्रतमें द्रव्यका एक एक देश आता है। पहले महाव्रतको सर्वे सूक्ष्म बादर जीवोंका परिपालनरूप होनेके कारण उसमें केवल एक जीवद्रव्य ही आता है। दूसरे तथा पाँचवें महाव्रतमें सर्वे द्रव्योंका समावेश इस प्रकार समझना-यह पंचास्तिकायात्मक लोक किसने देखा है ? यह तो ऐसे ही झूठमूठ बात है। ऐसे वचन बोलनेके परित्यागसे छः ही द्रव्योंका संबन्ध दूसरे महाव्रतमें आजाता है । पाँचवें महाव्रतमें अति मूच्छाके वश होकर ऐसा विचार करे कि मैं सर्वलोकका स्वामी बनूँ तो ठीक हो । इस तरहकी जो सर्व द्रव्यविषयक मूर्छा है, उसका परित्यागरूप पाँचवाँ परिग्रह विरमण महावत होनेसे उसमें भी छः ही द्रव्योंका समावेश हो जाता है। बाकीके दो महाव्रत द्रव्यके एक एक देशवाले हैं, अर्थात् कोई भी द्रव्य मालिकके विना दिये रखना या ग्रहण करना वह पुद्गल द्रव्यका एक देश होता है। उसका परित्यागरूप अदत्तादान विरमण नामक तीसरा महाव्रत कहा जाता है। ___ स्त्रीका रूप तथा उसके साथ रहा हुआ जो द्रव्य है, तत्संबन्धि मोहका परित्याग करना, सो अब्रह्मविरतिरूप चतुर्थ महाव्रत है। इसमें भी द्रव्यका एक ही देश आता है। आहार द्रव्यविषयक छठा रात्रिभोजन त्यागरूप व्रत है, उसमें भी द्रव्यका एक ही देश समाता है । इस प्रकार चारित्र सामायिक सर्व द्रव्यविषयिक समझना। ऐसे ही श्रुतसामायिक ज्ञानरूप होनेसे सर्व द्रव्यविषयिक है, तथा इसी प्रकार सम्यक्त्व सामायिक सर्व द्रव्योंकी श्रद्धारूप होनेके कारण वह भी सर्व द्रव्यविषयिक होता है । इस सामायिकको एक जीव संसारअटवीमें परिभ्रमण करता हुआ संख्य