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चौदहवाँ गुणस्थान.
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वृहद्गच्छीय श्री मदनसेन मूरि महाराजके शिष्य श्री हेमतिलक सूरि महाराजके पट्टधर श्रीमदत्नशेखर सूरि महाराजने स्वोपकारार्थ तथा परोपकारार्थ इस ग्रन्थका श्रुत समुद्रसे उद्धार किया है । इस ग्रन्थकी पद्य रचना तो उनसे भी प्राचीन है किन्तु बड़े बड़े ग्रन्थोंसे उधृत करके प्रकरण रूपमें इसे श्री रत्नशेखर मूरि महाराजने किया है।
विक्रम सं. १९७४ आषाड शुक्ला अष्टमीके दिन अहमदावाद उजम बाईकी धर्मशालामें गुरुमहाराजकी कृपासे यह ग्रन्थ समाप्त हुआ ॥