________________
क्षपकश्रेणीका स्वरूप. (१९९) हो जाते हैं, चौथे समयमें मंथानके समान आत्मप्रदेशोंमें जो चारों तर्फ बीच बीचमें जगह खाली पड़ी थी उसको आत्मप्रदेशों द्वारा पूर्ण करके चौदह राजलोकमें व्यापक हो जाता है, अब चौदह राजलोकमें कोई एसा पुद्गल परमाणु नहीं रहा कि जिसे केवलज्ञानी महात्माके आत्मप्रदेशोंने न स्पर्श किया हो। पाँचवें समयमें आयुकर्मके साथ वेदनीय कर्मकी समानता करके मंथानके चारों तर्फ जो आँतरे आत्मप्रदेशोंसे परिपूर्ण थे उन्हें अपने शरीरमें संहरण करता है, सातवें समयमें कपाटाकार आत्मप्रदेशोंको संहरण करता है और आठवें समयमें दंडाकार आत्मप्रदेशोंको संहरण करता है, एवं आठ समयकी केवलज्ञानी महात्मा केवल समुद्घात करता है । समुद्घात करते वक्त प्रथम समय और आठवें समय औदारिक काय योग होता है, दूसरे समय, छठे समय तथा सातवें समय, इन तीनों समयोंमें औदारिक मिश्रकाय योग होता है, और बीचके जो बाकी तीन समय हैं उनमें कामण योग होता है, अत एव उन बीचके तीन समयोंमें केवलसमुद्धाती अनाहारी होता है, कितने एक केवलज्ञानी महात्मा विना ही समुद्घात किये मुक्तिको प्राप्त करते हैं, क्योंकि सभी केवली समुद्घात करें ऐसा कुछ नियम नहीं, इसके लिए श्री पनवणा सूत्रमें लिखा है कि-'सव्वेविणं भंते, केवली समुग्घायं गच्छेइ गोयमा नो इणमटे समढे जस्साउएण तुलाइं बंधणेहिं ठिइहेय भवोपज्जइ कम्माइं। न समुग्धायं सम गच्छई अगंतूण समुग्घाय मणंतकेवली जिणा जरामरण विष्पमुक्का सिद्धिवरगयं गया। जिस केवली महात्माके आयु कर्म और वेदनीय कर्म समान हों वह महात्मा समुद्घात न करे और जो समुद्घात करते हैं वे भी अत्तरमुहर्स आयु रहनेपर करते हैं । सयोगी केवली महात्मा शेष