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(१९४) गुणस्थानक्रमारोह. नहीं बाँधता, क्योंकि मिथ्यात्वरूप बीजके नष्ट होने पर अनन्तानुबन्धि रूप अंकूरका उत्पन्न होना संभव नहीं हो सकता । चार अनन्तानुबन्धि और तीन मोहनीय, ये सात प्रकृतियाँ क्षय करके जो जीव चढ़ते परिणामसे काल करे वह अवश्यमेव देवगतिमें ही जाता है और यदि पतित परिणामसे मृत्यु पावे तो अनेक परिणामकी धारा होनेके कारण जैसा परिणाम वैसी ही गतिको प्राप्त करता है । जिस जीवने पूर्वमें आयु बांध लिया है वह जीव यदि इस अवसरमें काल न करे तो भी पूर्वोक्त सात प्रकृतियों को क्षय करके उसी परिणामसे प्रवर्ते, परन्तु आगे दूसरी चारित्र मोहनीयकी प्रकृति पखाने के लिए प्रयत्न न करे, क्षीणसप्तक बद्धायुजीव उसी भवमें मुक्तिपदको प्राप्त न करे किन्तु तीसरे या चतुर्थ भवमें तो अवश्यमेव मोक्ष प्राप्त करे, क्योंकि जिसने प्रथमदेव आयु या नरक आयु बांध लिया हो वह देवगति या नारकीमेंसे मनुष्य भव प्राप्त कर चारित्र ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त करता है । जिसने पूर्वमें मनुष्यका तथा तिर्यचका आयु बांध लिया हो और इसके बाद सात प्रकृतियों को क्षय किया हो वह जीव नियमित असंख्य वर्षका आयु बांधता है, परन्तु संख्यात वर्षका आयु बांधकर पीछे सात प्रकृतियोंको क्षय न करे, वह जीव वहाँ काल करके युगलियोंमें जाता है, और वहाँ पर नियमित ही भव प्रत्यय देव संबन्धि आयुका बन्ध करता है, अतएव वहाँसे देवगतिमें ही जाता है और वहाँ पर भवप्रत्यय सम्यक्त्व होनेपर भी मनुष्य मतिका ही बन्ध करता है । देवगतिसे मनुष्यमें आकर फिर आगेका आयु न बांधे, किन्तु चारित्र ग्रहण करके शेष इक्कीस प्रकृतियां मोहनीय कर्मकी क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त करता है, इस अपेक्षासे चौथे भवमें