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गुणस्थानक्रमारोह.
अधिक देशऊणा अर्ध पुद्गलपरावर्तका अन्तर समझना। इसमें जो उत्कृष्ट अन्तर बताया है वह देव-गुरु-धर्मकी अतीव आंशातना करनेवाले जीवके लिये समझना । पूर्वोक्त भेदोंवाला सामायिक सर्वगुणों का आधार भूत है । जिस प्रकार आधारके बिना आधेय नहीं ठहर सकता, वैसे ही सामायिक विन सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन तथा सम्यक्चारित्रादि गुण नहीं ठहर सकते। अर्थात् सम्यग्ज्ञानादि गुण सामायिकको ही आश्रय करके रहते हैं। यह पूर्वोक्त सामायिक व्रत जीवोंको अशुभ कर्मके नष्ट होने पर प्राप्त होता है ।
अब दूसरा शिक्षा व्रत कहते हैं.
देशावकाशिक नामा दूसरा शिक्षा व्रत है। इस व्रतमें गमनागमनका दिशाओं संबन्धि नियम किया जाता है, अर्थात् इस व्रतको धारण करनेवाला मनुष्य प्रातः काल उठ कर गमनागमनके लिये दिशाओंका परिमाण करे कि अमुक दिशामें अमुक योजन या अमुक कोसों तक अमुक दिशामें अमुक हद तक ही आना जाना खुला है, उस हदसे आगे नहीं जा सकता । याने जितनी दिशायें जितने परिमाणसे रक्खी हों उन दिशाओं में नियमित मर्यादासे उपरान्त नहीं जा सकता । इस प्रकार पूर्वोक्त व्रतका प्रातःकालमें नियम धारण करके फिर उस नियमको संध्या समय संक्षिप्त करे, अर्थात् जितने समय तकका वह नियम किया हो, उतने समय बाद उपयोग पूर्वक उस व्रतको अवश्य स्मृतिमें लावे | यदि रात्रिसंबन्धि किया हो, तो प्रातःकाल और यदि दिन संबन्धि किया हो, तो संध्यासमय उसे जरूर उपयोग पूर्वक याद करना चाहिये । इस व्रतको धारण करनेसे जो लाभ होता है, सो तो हम प्रथम ही संक्षेपसे लिख आये हैं ।