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गुणस्थानक्रमारोह.
व्याख्या-चतुर्दश राजलोक प्रमाण क्षेत्रमें गुण पर्याय सहित जितने द्रव्य रहे हुए हैं, चाहे वे रूपी हों या अरूपी, उन सबको सिद्ध परमात्मा साक्षात्कार तया जानते हैं और देखते हैं । अर्थात् केवल ज्ञानोत्पन्न होने पर प्रथम समयमें ही विश्व भरके चराचर रूपी अरूपी जीवाजीवादि समस्त पदार्थोंको भूत भविष्यत् वर्तमान कालमें केवली भगवान साक्षात्कारसे देख लेते हैं। केवल ज्ञान अप्रतिपाति होनेसे सिद्धावस्थामें सदा काल वैसा ही रहता है ॥ ___ अब सिद्धोंके हेतु सहित आठ गुण बताते हैंअनन्तं केवलज्ञानं, ज्ञानावरणसंक्षयात् । अनन्तं दर्शनं चैव, दर्शनावरणक्षयात् ॥१३०॥ शुद्धसम्यक्त्वचारित्रे, क्षायिके मोहनिग्रहात्। अनन्ते सुखवीर्ये च, वेद्यविघ्नक्षयाक्रमात् ॥१३१॥ आयुषः क्षीणभावत्वात्, सिद्धानामक्षया स्थितिः। नामगोत्रक्षयादेवामूर्त्तानन्तावगाहना ॥ १३२ ॥
त्रिभिर्विशेषकम् ॥ श्लोकार्थ-ज्ञानावरणके क्षय होनेसे अनन्त केवल ज्ञान होता है, दर्शनावरणके क्षय होनेसे अनन्त दर्शन होता है, वेद्यविघ्नके क्षय होनेसे अनन्त सुख तथा अनन्त वीर्य होता है, आयु क्षय होनेसे अक्षय स्थिति होती है और नाम गोत्रके क्षय होनेसे अनन्त अमूर्त अवगाहना होती है ।
व्याख्या-ज्ञानावरणीय कर्मके क्षय होनेसे सिद्धात्माओंको अनन्त केवल ज्ञान होता है, दर्शनावरणीय कर्मके नष्ट होनेसे अनन्त दर्शन होता है। दर्शन मोहनीय तथा चारित्र मोहनीयके क्षय होनेसे विशुद्ध क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र होता