________________
(९२) गुणस्थानक्रमारोह.
जो मनुष्य चार प्रकारकी विकथा सुनकर अतीव खुश होते हैं, सत्यको असत्य और असत्यको सत्य ठहरा कर खुशी मनाते हैं, बंधिर मनुष्योंकी हँसी उड़ा कर या उन्हें खिजा कर आप खुश होते हैं, सत्य देव प्रणीत मार्ग प्रदर्शक शास्त्रोंका श्रवण न करके उन्मार्ग प्रवृत्तिको बढ़ानेवाले शास्त्रोंका श्रवण करते हैं और विचारे दीन दुखियोंके करुणामय वचन सुनकर उनकी मस्करी उड़ा कर सुख मानते हैं, वे मनुष्य भवान्तरमै श्रवणेन्द्रियकी हीनता प्राप्त करते हैं। पूर्वोक्त कृत्यसे विपरीत सत्य धर्म शास्त्रोंका श्रवण करके शास्त्रोक्त वचनों पर यथायोग्य श्रद्धा करे, दीन हीन मनुष्योंके करुण वचन सुनकर उनके दुःखको दूर करने का प्रयत्न करे या उन्हें मधुर मीठे वचनोंसे संतोष पहुँचावे, गुणवान मनुप्योंके गुण श्रवण करके उनपर अनुराग बुद्धि धारण करे, गुणवान पुरुषोंकी निन्दा चुगली न करे और न ही करावे, इससे मनुष्य श्रवणेन्द्रियकी पुष्टता निरोगता तथा प्रवल शक्तिता प्राप्त करता है । जो मनुष्य स्त्री पुरुषोंका मनोहर रूप लावण्य देख कर विषयोंमें अतीव मन लगाते हैं, रूपहीन स्त्री पुरुषोंको देख कर मनमें बड़ी घृणा दुगंच्छा करते हैं या उनका तिरस्कार करते हैं अथवा उनकी हँसी मस्करी उड़ाकर मनमें खुशी होते हैं, पाखंडियोंके शास्त्र पढ़ते हैं, अथवा जिन पुस्तकोंके वाँचनेसे अधर्ममें मनकी प्रवृत्ति हो ऐसे पुस्तक वाँचते हैं या सदा कालं नाटकादिके देखनेमें ही मन रहते हैं, पशु पक्षियोंकी आँखोंको पीड़ा पहुँचाते हैं या मनुष्योंको अंधे कह कर उनका दिल दुखाते हैं या किसीकी आँख फोड़ डालते हैं अथवा दूसरोंसे किसीको अंधा कराते हैं या चक्षु इन्द्रियके विषयोंमें मस्त होकर उसमें ही जिन्दगीकी सफलता समझते हैं, वे मनुष्य भवान्तरमें चक्षुरिन्द्रिय नहीं प्राप्त करते और यदि