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तेरहवाँ गुणस्थान. (१६७) सूक्ष्मक्रिया है, उसे सूक्ष्मक्रिया निवृत्तिक तीसरा शुक्ल ध्यान कहते हैं । .. व्याख्या-जिस ध्यानमें अनिवृत्तिक आत्मस्यन्दात्मिक सूक्ष्म क्रिया होती है वह सूक्ष्म क्रिया निवृत्तिक नामा शुक्ल ध्यानका तीसरा पाया होता है। केवली भगवान जब शुक्ल ध्यानके तीसरे पायेको ध्याता है, उस वक्त आत्मामें जो चलनरूप क्रिया है उसे वह सूक्ष्म करता है, क्योंकि आत्मस्यन्दनरूप जो क्रिया है वह सूक्ष्म होनेके कारण अनिवृत्तिक होती है, अर्थात् वह क्रिया सूक्ष्मताको छोड़कर पुनः स्थूलताको प्राप्त नहीं होती।
केवली प्रभु मन वचन कायके योगको किस प्रकार सूक्ष्म . करता है सो चार श्लोकों द्वारा बताते हैंबादरे काययोगेऽस्मिन् , स्थितिं कृत्वा स्वभावतः। सूक्ष्मी करोति वाञ्चित्तयोगयुग्मं स बादरम् ॥९७॥ त्यक्त्वा स्थूलं वपुर्योगं, सूक्ष्मवाचित्तयोः स्थितिम्। कृत्वा नयति सूक्ष्मत्वं, काययोग तु बादरम् ।। ९८॥ सुसूक्ष्मकाययोगेऽथ, स्थितिं कृत्वा पुनः क्षणम् । निग्रहं कुरुते सद्यः, सूक्ष्मवाञ्चित्तयोगयोः ॥९९॥ ततः सूक्ष्मे वपुर्योगे, स्थितिं कृत्वा क्षणं हि सः। सूक्ष्माक्रियं निजात्मानं, चिद्रूपं विन्दति स्वयम् १०० .. श्लोकार्थ-इस बादर काययोगमें स्वभावसे स्थिति करके बादर वचनयोग और चित्तयोगको सूक्ष्म करता है। स्थूल शरीर योगको छोड़के सूक्ष्म वचनयोग और सूक्ष्म चित्तयोगमें स्थिति करके बादर काय योगको सूक्ष्म करता है, फिर सूक्ष्म काय योगमें