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गुणस्थानक्रमारोह.
वल ज्ञान प्राप्त करता है, वह समुद्घात करता है, तथा अन्य केवली करें और न भी करें । ___ व्याख्या-जो महात्मा छः महीने शेष आयु रहने पर केवल ज्ञानको प्राप्त करता है, वह केवल ज्ञानी अवश्य ही समुद्घात करता है, क्योंकि उसके आयु कर्मके दलियोंसे वेदनीय कर्मके दलिये अधिक होते हैं । छः मासके अन्दर आयुवाले केवल ज्ञानियोंको कोई नियम नहीं कि वे जरूर समुद्घात करें ही। शास्त्रमें फरमाया है कि-षण्मास्यायुषि शेषे उत्पन्नं येषां केवलज्ञानम् । ते नियमात्समुद्घातिनः शेषाः समुद्घाते भक्तव्याः ॥१॥
केवली प्रभु समुद्घातसे निवृत्त होकर जो करता है सो कहते हैंसमुद्घातानिवृत्तोऽसौ, मनोवाकाययोगवान् । ध्यायेद्योगनिरोधार्थ, शुक्लध्यानं तृतीयकम् ॥९५॥
श्लोकार्थ-समुद्घातसे निवृत्त होकर केवली प्रभु मन वचन कायके योग सहित योग निरोध करनेके लिए तीसरे शुक्ल ध्यान. को ध्याता है ॥
व्याख्या-समुद्घातसे निवृत्त होकर मन वचन कायके योग वाला केवल ज्ञानी महात्मा योग निरोध करनेके लिए याने योगको रोकनेके लिए तीसरे शुक्ल ध्यानको ध्याता है।
अब तीसरे ही शुक्ल ध्यानका स्वरूप लिखते हैंआत्मस्यन्दात्मिका सूक्ष्मा, क्रिया यत्रानिवृत्तिका । तत्तृतीयं भवेच्छुक्त, सूक्ष्मक्रियानिवृत्तिकम् ।। ९६ ॥
श्लोकार्थ-जिस ध्यानमें अनिवृत्तिक आत्मस्यन्दात्मिक