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(९६) गुणस्थानक्रमारोह.. उस वक्त उस स्टीमर या नावमें जितने आदमी बैठे होते हैं उन सबकी एक समय ही मृत्यु होती है, बड़े बड़े शहरोंमें जो आज कल महामारि प्लेगमें एकदम सैकड़ों मनुष्योंकी मृत्य होती है, वह सब सामुदायिक आयु कर्मसे ही होती है। - जो मनुष्य सर्व जीवों पर दयाभाव रख कर हीनसत्व जीवोंको अनेक प्रकारसे सहायता देकर उन्हें सुख पहुँचाता अथवा क्रूर मनुष्यों या अन्य जीवोंसे मरते हुए प्राणियोंको अपनी सत्तासे या द्रव्यसहायतासे बचाता है, वह मनुष्य भवान्तरमें निरोगी शरीरवाला होकर सदा काल सुख संपदाको भोगता है।
जो मनुष्य वैद्य या डाक्टर बनकर दूसरों के साथ विश्वास घात करता है, विधवा स्त्रियोंको गर्भ रह जानेपर अपनी जेब भरके उनके गर्भको गर्म दवा देकर नष्ट करता है या लोभके वश रोगीको रोग बढ़ानेकी दवा देता है, ज्योतिषी बन कर ग्रह, नक्षत्र, भूत, प्रेत, व्यन्तर, व्याधि वगैरहका डर बता कर दूसरोंको लूटके अपना पेट भरता है, वह मनुष्य भवान्तरमें महादुःखोंका पात्र होता है तथा अनेक प्रकारके उपाय सेवन करने पर भी उसका शरीर सदा काल रोग ग्रसित ही रहता है।
इस तरह कर्म बन्ध तथा उसको भोगनेके शास्त्रमें अनेक प्रकार बतलाये हैं । इस भवमें बाँधे हुए कर्म कितने एक तो इसी भवमें भोग लिये जाते हैं और कितने एक आगामि भवमें भोगने पड़ते हैं तथा कितने एक कर्म बहुतसे भवोंतक भोगने पड़ते हैं । अनन्त ज्ञानी सर्वज्ञ देवने संसारमें परिभ्रमण करनेवाले समस्त प्राणियोंकी कर्मविपाकोदय समय जो दशा अपने अद्वितीय ज्ञान चक्षुसे देखी है, उसे वे वचन द्वारा संपूर्ण तया कथन नहीं कर सकते, क्यों कि चतुर्गतिरूप संसारमें अनन्त प्राणी भरे हुए है