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आठवाँ गुणस्थान. (१२९) दफा उपशम श्रेणी प्राप्त की हो या सर्वथा श्रेणी प्राप्त ही न की हो वही योगी क्षपक श्रेणीको प्राप्त कर सकता है, परन्तु जिसने उसी भवमें दो दफा उपशम श्रेणी प्राप्त कर ली हो, वह महात्मा उस भवमें फिर क्षपक श्रेणी नहीं प्राप्त कर सकता । शास्त्रमें फर• माया है-जीवो हु एग जम्मंमि, इक्कसि उवसामगो । खयंपि कुजा नो कुज्जा, दो वारे उवसामगो ॥१॥ अर्थ-एक भवमें जिस जीवने एक दफा उपशम श्रेणी की है वह जीव उसी भवमें क्षपक श्रेणी कर सकता है, परन्तु जिसने एक भवमें दो दफा उपशम श्रेणी की हो वह फिर उसी भवमें क्षपक श्रेणी नहीं कर सकता। ___ उपशम श्रेणीको प्राणी कितनी दफा प्राप्त कर सकता है सो कहते हैं
आसंसारे चतुर्वारमेवस्याच्छमनावली। जीवस्यैकभवे वारद्वयं सा यदि जायते ॥ ४६ ॥
श्लोकार्थ-संसार पर्यन्त जीवको चार दफा उपशम श्रेणी प्राप्त होती है और यदि एक भवमें होवे तो दो दफा हो सकती है। .. व्याख्या-अनादि सान्त संसार पर्यन्त जीवको उपशम श्रेणी चार वार प्राप्त हो सकती है, अर्थात् जब तक जीव संसारसे मुक्त न हो-मोक्ष प्राप्त न करे तब तक वह जीव उपशम श्रेणीको चार दफा प्राप्त कर सकता है और यदि एक भवमें उत्कृष्ट तया ( अधिकसे अधिक) प्राप्त करे तो केवल दो दफा कर सकता है। शास्त्रमें भी कहा है-उवसमसेणि चउकं, जायइ जीवस्स आभवं नूणं । सापुण दो एग भवे, खवगस्सेणी पुंणो एगो ॥१॥ अर्थ-जीवको उपशम श्रेणी तमाम संसारमें चार दफा प्राप्त होती है और यदि एक भवमें अधिकसे अधिक हो तो दो दफा प्राप्त हो सकती है, तथा क्षपक श्रेणीको तो जीव तमाम संसारमें अर्थात्
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