Book Title: Gunsthan Kramaroh
Author(s): Tilakvijaymuni
Publisher: Aatmtilak Granth Society

View full book text
Previous | Next

Page 171
________________ (१५०) गुणस्थानक्रमारोह. .. व्याख्या-जिस ध्यानमें अपने विशुद्धात्म द्रव्यका अथवा परमात्म द्रव्यके एक पर्यायका, या आत्माके अद्वितीय एक गुणका निश्चल तया एकाग्रतासे चिन्तवन किया जाता है, उस ध्यानको ध्यानज्ञ पुरुषोंने एकत्व ध्यान कहा है। अपृथक्त्व कहो चाहे एकत्व, एकत्व और अपृथक्त्वमें कुछ भेद नहीं, अपृथत्त्वको ही एकत्व कहते हैं। अब अविचारत्व भेद बताते हैंयद् व्यञ्जनार्थयोगेषु, परावर्तविवर्जितम् । चिन्तनं तदविचारं, स्मृतं सद्ध्यानकोविदैः ॥७७॥ श्लोकार्थ-जो व्यंजनार्थ यागोंके विषयों परावर्त रहित चिन्तवन किया जाता है, उसे सद् ध्यानज्ञ पण्डित पुरुषोंने अविचार ध्यान कहा है। व्याख्या-जिस ध्यानमें शब्द, अभिधेय और योगोंमें परिवर्तन नहीं होता, अर्थात् शब्दसे शब्दान्तरमें, अभिधेयसे अभिधेयान्तरमें और योगसे योगान्तरमें संक्रमण नहीं होता, केवल श्रुत ज्ञानके अनुसार ही जो चिन्तवन किया जाता है, उसे अविचार शुक्ल ध्यान कहते हैं । शुक्क ध्यानका विषय बड़ा ही गहन है, आज कलके समयमें प्रस्तुत शुक्ल ध्यान फक्त शास्त्राम्नायसे ही सिद्ध है, परन्तु अनुभव सिद्ध नहीं। श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी भी फरमाते हैं कि-अनविच्छित्याम्नायः, सपागतोस्येति कीयंते स्वामिः । दुष्करमप्याधुनिकैः, शुक्लध्यानं यथाशास्त्रम् ॥ १॥ परंपरासे प्राप्त हुए शुक्ल ध्यानका आम्नाय विच्छेद न हो इस लिये हम शास्त्रानुसार इसका कीर्तन करते हैं, परन्तु आज कलके प्राणियोंको यह ध्यान बड़ा दुष्कर है । इसी

Loading...

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222