________________
(१३०)
गुणस्थानकमारोह.
जब तक वह जीव संसारमें है, मोक्ष प्राप्त नहीं करता तब तक एक ही दफा प्राप्त करता है।
अब क्षपक श्रेणीका स्वरूप लिखते हैंअतो वक्ष्ये समासेन, क्षपकश्रेणीलक्षणम् । योगी कर्मक्षयं कर्तु, यामारुह्य प्रवर्तते ॥४७॥
श्लोकार्थ-जिसे आरोहण करके योगी कर्म क्षय करनेको प्रवृत्त होता है, अब उसी क्षपक श्रेणीका लक्षण कथन करेंगे। ___ व्याख्या-जिस क्षपक श्रेणीको आरोहण करके क्षपक योगी अनादि काल संचित कर्मोंको क्षय करनेके लिए प्रवृत्त होता है, अब उसीका स्वरूप संक्षेपसे कथन करते हैं। ___ आठवें अपूर्वकरण नामा गुणस्थानसे पहले क्षपक महात्मा जिन जिन कर्म प्रकृतियोंको क्षय करता है उन्हें तीन श्लोकों द्वारा बताते हैं
अनिबद्धायुषः प्रान्त्यदेहिनो लघुकर्मणः। असंयत-गुणस्थाने नरकायुः क्षयं व्रजेत् ॥ ४८॥ तिर्यगायुः क्षयं याति, गुणस्थाने तु पंचमे । सप्तमे त्रिदशायुश्च दृग्मोहस्यापि सप्तकम् ॥ ४९ ॥ दशैताः प्रकृतीः साधुः क्षयं नीत्वा विशुद्धधीः। धर्मध्याने कृताभ्यासः, प्राप्नोति स्थानमष्टमम् ॥५०॥
श्लोकार्थ-जिस महात्माने आयु न बाँधा हो उस अन्त देहधारी लघु कर्मी क्षपक योगीका नरक संबन्धि आयु असंयत गुणस्थानमें क्षय हो जाता है, पंचम गुणस्थानमें तिथंच संबन्धि आयु नष्ट हो जाता है तथा सातवें गुणस्थानमें देवता संबन्धि