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आठवाँ गुणस्थान. (१२५) वाला योगी उपशमश्रेणीमें प्रवेश करता है, वह उपशमश्रेणीको खंडित नहीं करता, ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त चढ़ता है, ग्यारहवें गुणस्थानमें चारित्र मोहनीय कर्मको सर्वथा उपशान्त कर देता है, मगर सत्तामें दवाई हुई कर्म प्रकृतियाँ उसे वहाँसे ऊपर नहीं चढ़ने देती। उस योगीको वहाँसे मोहनीय कर्मकी प्रकृति ही नीचे पटकती हैं। ___ आत्माको निर्मल करने वाले गुणोंकी शास्त्रकारोंने दो श्रेणियाँ विभक्त कर दी हैं। जिसमें एक उपशमश्रेणी और दूसरी क्षपक श्रेणी है । उपशमश्रेणी यद्यपि आत्माको निर्मल करती है, परन्तु वह ग्यारहवें गुणस्थानसे ऊपर नहीं चढ़ने देती। यदि उपशम श्रेणीवाले महात्माकी आयु पूर्ण होनेसे वह श्रेणी ही के अन्तर्गत काल कर जाय तो देवलोकमें जाता है। यदि ग्यारहवें गुण. स्थानसे नीचे पड़ कर मिथ्यात्वमें आ जाय तो वह नीच गतियों में भी चला जाता है और ग्यारहवें गुणस्थानसे पड़ता हुआ सातवें गुणस्थानमें आ पड़े तो वह क्षपकश्रेणीमें आरूढ़ होकर मोक्षमें भी जा सकता है। अब रही श्रपकश्रेणी-क्षपकश्रेणी वाला महात्मा ध्यानानलसे काँको भस्म ही करता हुआ ऊपरके गुणस्थानों में चढ़ता है, अतः उसे किसी भी गुणस्थानमें रुकावट करने वाली कोई वस्तु नहीं। वह महात्मा क्षीणमोह नामा बारहवें गुणस्थानके अन्तमें केवल ज्ञान पर्यन्त अखंड क्षपक श्रेणीसे जाता है, अर्थात् क्षपकश्रेणीवाले महात्माको अवश्यमेव क्षपक श्रेणीमें केवल ज्ञान प्राप्त होता है और उसकी गति भी सिवाय मोक्षके अन्य नहीं।
उपशमक महात्मा अपूर्व करणादि गुणस्थानोंमें जिन कर्म प्रकृतियों को जिस प्रकार उपशान्त करता है सो कहते हैं