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छठा गुणस्थान.
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रथ-गाड़ी वगैरहकी सवारी प्राप्त हो, हिना, केवडा, गुलाब, मोगरा, अतर फुलेल आदि सुगन्धित पदार्थोकी प्राप्ति हो । सौना चाँदी रत्न वगैरह उत्तम धातुओंके अच्छे अच्छे मुझे आभूषण पहरनेको मिलें, रेश्मी या जरीके बहु मूल्यवाले और भारमें हलके वस्त्र शरीरमें पहनकर बालोंको तेल लगाकर ठीक ठाक करके जंटलमैन बनके अपनी शोभा दूसरोंको दिखलाऊँ। मनुष्यके हृदयमें जो ये पूर्वोक्त विचार उत्पन्न होते हैं यह केवल मोहनीय कर्मका ही प्रभाव है, मोहनीय कर्मके उदय होनेसे ही पूर्वोक्त वस्तुओंका भोग भोगनेकी तीव्र इच्छा होती है। पूर्व जन्ममें किये हुए सुकृतके प्रभावसे पूर्वोक्त सर्व पदार्थों की प्राप्ति होनेपर उन वस्तुओंका उपभोग करते समय अन्तःकरणमें जो सुख और आनन्द पैदा होता है, उस आनन्दसे मनमें जो ऐसा विचार आता है कि मैं सर्व मनोवांच्छित सुखको भोगनेवाला हूँ। उन मनइच्छित पदार्थोंको भोगते हुए अनुमोदना करते हुए मुखसे जो स्वाभाविक आनन्दके उद्गार निकलते हैं तथा मन ही मन जो विचार होते हैं, इन सबको तत्वज्ञानी पुरुषोंने आर्त ध्यानका इष्टसंयोग नामक दूसरा भेद फरमाया है। कितने एक आचार्योंका ऐसा भी कथन है कि आर्त ध्यानका दूसरा भेद इष्टवियोग है।
काल-ज्ञान विषय अनेक ग्रन्थों में प्रतिपादन किया है, उसके अनुसार अपने स्वर ऊपरसे या ज्योतिष वगैरह विद्याके प्रभावसे अपनी मृत्युके थोड़े दिन जान कर अपने मनमें विचार करे कि मेरी ये सब वस्तुयें मुझसे छूट जायँगी, हा ! इस सुन्दर शरीर, प्यारे कुटुंबियों तथा स्वजन स्नेहीजनों और महाकष्टसे प्राप्त की हुई इस विपुल धनसंपत्तिको त्याग कर अब मैं चला जाऊँगा ? अपने माने हुए मददगार, मित्र, प्रियस्त्री वगैरहके वियोगसे मार्छित