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छठा गुणस्थान.
(७९) जीवको होती है। दूसरी नील लेश्या अधर्मी जीवको होती है। तीसरी कापोत लेश्या वक्र स्वभावी कदाग्रही जीवको होती है। तेजो लेश्या न्यायवान जीवको होती है। पद्म लेश्या धर्मात्मा जीवको होती है और शुक्ल लेश्या मोक्षार्थी प्राणीको होती है। ___ग्यारहवीं भव्य मार्गणा-जिस जीवमें मोक्ष प्राप्त करनेकी शक्ति होती है, उसे भव्य कहते हैं। संसारवासि जीवोंमें दो प्रकारके जीव होते हैं। जिनके अन्दर मोक्षपद पानेकी शक्ति है, उन जीवोंको भव्य कहते है और जिनमें कभी मोक्षपद प्राप्त करनेकी शक्ति ही नहीं, अनादि कालसे संसार चक्रमें परिभ्रमण कर रहे हैं और अनन्त काल तक संसारमें ही रखड़ते रहेंगे, उन्हें अभव्य कहते हैं।
. बारहवीं सम्यक्त्व मार्गणा-पदार्थके यथातथ्य स्वरूपको जानकर उसे वैसे ही स्वरूपमें मानना, उसे सम्यक्त्व कहते हैं । सम्यक्त्व सात प्रकारका होता है, पहले गुणस्थानमें रहनेवाले जीव प्रथम सम्यक्त्वमें समाविष्ट हो जाते हैं, इसे ही मिथ्यात्व सम्यक्त्व कहते हैं । दूसरा सास्वादन सम्यक्त्वऊपरके गुणस्थानों में चढ़ा हुआ जीव मोहनीय कर्मके वश होकर जब नीचे गिरता है, तब उस जीवको खाई हुई खीर वम देनेपर जो स्वाद रहता है वैसा ही स्वाद ऊपरके गुणस्थानोंसंबन्धि सम्यक्त्वका रहता है, सो भी अल्प समय तक ही रहता है, उसके बाद वह जीव प्रथम गुणस्थानमें चला जाता है, जब तक वह जीव ऊपरसे पड़ता हुआ प्रथम गुणस्थानको प्राप्त न करे तब तक उसे सास्वादन नामक सम्यक्त्व होता है । तीसरा मिश्र सम्यक्त्व-मिश्र गुणस्थानका स्वरूप हम प्रथम लिख चुके हैं उस स्थानमें रहे हुए जीवको जो सर्व धर्मोपर समान