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'छठा गुणस्थान.
(८७) ओंका आकर्षण किया करते हैं। . बारह अवत-पाँच इन्द्रियाँ छठा मन, इन छओंको नियममें न रखना तथा छकायके वध करनेका नियम न करना, इनको बारह अत्रत कहते हैं । ५ पाँच मिथ्यात्व-प्रथम अभिग्राहिक मिथ्यात्व-असत्यमार्ग ( असत्यश्रद्धान) को दृढतासे धारण कर रक्खे । दानांतराय, लाभांतराय, वीर्यातराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, हास्य, रति, अरति, भय शोक, निंदा, काम, मिथ्यात्व, अज्ञान, निद्रा, अविरति, राग, द्वेष । इन अठारह दूषणों सहित देवको सत्य देव तरीके माने तथा पूर्वोक्त अठारह दूषण रहित सत्य देवको असत्य देव तरीके माने । सद्गुरुके गुणोंसे रहित और दुर्गुणोंसे परिपूर्ण पाखंडीको सद्गुरु तरीके माने, एवं सर्वज्ञ देवके कथन किये दयामय परम पवित्र धर्मको छोड़कर अल्पज्ञके कथन किये हुए हिंसात्मक धर्मको सत्य धर्म माने । पूर्वोक्त तीनों तत्वोंको कदाग्रह पूर्वक ग्रहण करे, उसे अभिग्राहिक मिथ्यात्व कहते हैं। दूसरा मिथ्यात्व है अनाभिग्राहिक, सुदेव, कुदेव, सुगुरु, कुगुरु, सुधर्म, कुधर्म आदि तत्वोंको समान दृष्टिसे देखे, सत्यासत्यमें किसी प्रकारका भेद न समझ कर सबको एक ही समान समझे, उसे अनाभिग्राहिक मिथ्यात्व कहते हैं। तीसरा अभिनिवेशिक मिथ्यात्व-कुदेव, कुगुरु, कुधर्म, कुशास्त्र वगैरहको सत्य तया मानता हो परन्तु किसी सद्गुरुका संयोग मिलनेसे उसे सत्य देव गुरु धर्मका ज्ञान हो गया हो और यह भी मालूम हो गया हो कि मेरा मन्तव्य सरासर असत्य है, तथापि लोक लिहाजसे उस असत्य मन्तव्यको न छोड़े, उसे अभिनिवे. शिक मिथ्यात्व कहते हैं । चौथा सांशयिक मिथ्यात्व-कितने एक मनुष्य पूर्वकृत सुकृतके प्रभावसे परम पवित्र सर्वज्ञ देवक कथन