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छठा गुणस्थान.
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होनेके कारण वही वस्तु किसी समय भयंकर स्वरूपमें देख पड़ती है, अर्थात् जो वस्तु प्रथम जिस स्वरूपमें स्थित रही हुई मनोज्ञ
और रमणीय मालूम होती थी वही वस्तु परिवर्तन होते होते ऐसे स्वरूप या स्वभावमें स्थित हो जाती है कि उसकी तरफ दृष्टि पात करते हुए भी घृणा उत्पन्न होती है । ऐसे विनश्वर पौद्गलिक वस्तु समूहको नष्ट होता देख या जानकर उसे सदाके लिए कायम रखनेको अनेक प्रकारके उपाय करे या राज्यलक्ष्मी प्राप्त होनेपर मनमें विचार करे कि मेरे राज्यमें शत्रुराजा न आ घुसे इसलिये अच्छे अच्छे बलीष्ट योद्धाओंको फौजमें भरती करूँ, जिससे काम पड़नेपर शत्रु सैन्यको मार भगावें, तथा सामन्त वगैरह लोगोंको भी मान सन्मान और धन इत्यादि देकर खुश रख्खू कि जिससे वे लोग भी काम पड़नेपर अपने प्राण देनेको लड़ाईमें शत्रुके सामने तैयार हो जायें । इत्यादि राज्य लक्ष्मीका संरक्षण करनेके लिए रात दिन संकल्प विकल्प जन्य चिन्ता किया करे । इसी तरह धनादिकी प्राप्ति होनेपर उसके रक्षपके वास्ते रात दिन यही विचार करे कि अब इस धनको जमीनमें ऐसे स्थानपर गाड , कि जहाँ पर किसीको यह शंका भी न पड़े कि यहाँ पर कुछ होगा, अथवा किसी लोहेके सन्दूकमें रखकर खंभाती ताले लगा हूँ जिससे चोर अग्नि वगैरहके उपद्रवका डर ही न रहे। ___अब किसीके साथ मित्राचारी या बहुत परिचय न करूँ जिससे कभी खर्च करनेका समय ही न आवे, धर्मोपदेशक या धर्मगुरुओंके पास जाना भी अब कम करूँगा जिससे वे मुझे कभी चार पैसे खर्चनेका काम न बतावें । बस अबसे शरीर पर वस्त्र भी फटे पुराने मैले कुचैले पहनूँगा जिससे धनवानकी शंका करके मुझसे कोई चार पैसे मांग ही न सके । एवं शरीरका संर