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(७४) गुणस्थानक्रमारोह. . मूल चतुर्दश मार्गणाओंका स्वरूप चिन्तवन करना चाहिये, इससे ध्यानमें बहुत कुछ स्थिरता प्राप्त होती है। मार्गणाओं के उत्तर भेद बासठ होते हैं । मूल मार्गणा-गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संझी, आहारिक । अब इन मूल मार्गणाओंका स्वरूप भिन्न भिन्न तया लिखते हैं।
प्रथम गति मार्गणा-जिसमें पूर्व पर्यायोंको बदल कर जीवोंका आना जाना होता है, उसे गति कहते हैं । वे गति चार हैं, नरक गति, तिर्यच गति, मनुष्य गति और देव गति । नरक गति अधोलोकमें है, वहाँ पर महादुःखप्रद सात भयंकर स्थान हैं, जिनके नाम -१ घम्मा, २ वंशा, ३ शेला, ४ अंजना, ५ रिहा, ६ मघा, ७ माघवती । प्रसिद्धिमें इन सातों स्थानोंके नाम गोत्र तया आते हैं इस लिए वे भी नाम हम यहाँ पर उधृत किये देते हैं-१ रत्नप्रभा, २ शर्करामभा, ३ वालुकाप्रभा, ४ पंकप्रभा, ५ धूमप्रभा, ६ तमामभा, ७ तमस्तमःप्रभा । तिरछे लोकमें महाकुर कर्म करनेवाले जीव नरक गतिमें-पूर्वोक्त सात स्थानों में जा कर उत्पन्न होते हैं और वहाँ पर चिरकाल तक रह कर पूर्वकृत अशुभ कर्मोंका फल दारुण दुःख भोगते हैं। दूसरी तिर्यच गति है, जिसमें सूक्ष्म एकेन्द्रियसे लेकर बादर एकेन्द्रिय तथा त्रस द्वीन्द्रियसे लेकर पंचेन्द्रिय पशु पक्षी वगैरह पैदा होते हैं। तीसरी मनुष्यगति-जिसमें तिरछे लोकमें कर्मभूमि तथा अकर्मभूमि क्षेत्रमें मनुष्य-प्राणी उत्पन्न होते हैं। चौथी देवगति है-जिसमें भुवनपति, बाणव्यन्तर, जोतिषी तथा वैमानिक देवता पैदा होते हैं, भुवनपति देवता दश प्रकारके होते हैं, सो निम्न लिखे मुजब समझना । असुर कुमार, नाग कुमार, सुवर्ण कुमार, विद्युत कुमार, अग्नि