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(६६) गुणस्थानकमारोह. इसलिए उन सब शूर वीरोंकी सहायता लेकर अब थोड़े ही समयमें बड़े बड़े शेठ साहूकार लोगोंकी समृद्धिका मालिक बनकर निश्चिन्तपने मौज मजा उड़ाऊँगा। अमुक स्त्री बड़ी सुन्दर और रूप लावण्यवाली है अतः उसे हरण करके उसके साथ विषय सुख भोगूंगा, तथा और भी जो उत्तमोत्तम पदार्थ हैं, उन्हें अनेक प्रकारके उपायोंसे अपने स्वाधीन करके और उन सबका उपभोग करके अपनी आत्माको तृप्त करूँगा। इसी तरह कितने एक नामधारी साहूकार दूसरे लोगोंको अपनी ऊपरी साहूकारी बतलाकर अच्छे अच्छे वस्त्राभूषण, तिलक, कंठी, माला, सुवर्णमयी पीली जंजीर, मुरकी तथा चमकदार बड़ी बड़ी पगड़ियां वगैरहसे शरीरकी शोभा बनाकर, बड़े बड़े गोल मोल तकियोंका ढासना लगाकर और हाथमें जपमाला ले दुकान पर गद्दीके ऊपर बैठके यही विचार करते रहते हैं कि गाँठका पूरा और अकलका दुश्मन ग्राहक कब आवे और कब हम उसे जपमाला फिराते फिराते मुखसे भगवानका नाम उच्चारण करते हुए मीठे मीठे वचन बोलकर, पान सुपारी खिलाकर अनेक प्रकारके लालचमें डालकर अपने जालमें फसावें और फिर अच्छी तरहसे उसकी हजामत विना ही पानी कर डालें। इस प्रकार भावमें, तोलमें, मोलमें, बोलमें, मापनेमें, हिसाबमें, देनेमें, लेनेमें, अनेक प्रकारसे उगकर जहाँ तक लूटा जाय वहाँ तक तो कसर न करे पीछे उसके भाग्यसे वह बच जाय तो भले । दूसरेके मनमें विश्वास बैठानेके लिए पाई पाई के वास्ते गाय, बैल, पुत्र, पिता, तीर्थ, धर्मग्रंक तथा धर्मकी कसम खावे, लेन देनके व्यापारमें दुगुना तिगुना व्याज बढ़ाकर अगलेका घर बरबाद कर डाले, दंभी कपटी अधर्मी होनेपर भी साहूकार कहाकर खुश होवे, इस भंगमें