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छठा गुणस्थान.
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अप्रीति पैदा होती है, तथापि असत्य भाषी मनुष्य इसका त्याग नहीं करते। कितने एक मनुष्य दगाबाजीसे अपना स्वार्थ गाँठ कर अपने मनमें बड़े खुश होते हैं और दगाबाजीके ही कामोंमें अपनी चतुराई तथा बहादुरी समझते हैं, हरएक प्रकारके प्रपंच करनेमें ही आनन्द मानते हैं, उन प्रपंचोंमें सफलता प्राप्त करके खुश होकर मनमें विचारते हैं कि देखी हमारी चतुराई ? हमने किस प्रकार दाव पेंच चलाकर लूली, लंगड़ी, अन्धी, काणी, रूपहीन गुणहीन कन्याको कैसे अच्छे श्रेष्ट घरानेमें व्याह दिया और उसके पाससे साढे तीन हजार रूपये लेकर वृद्ध, रोगी, तथा नपुंसकका कैसी खूबीसे विवाह करा दिया। अब वे वधु वर भले ताजिन्दगी चिल्ला कर रोते रहे मगर रूपचंद आनेसे अपना तो काम अच्छी तरहसे बन गया । इसी तरह खेत, बाग, बगीचे, घोड़ा, गाड़ी, वगैरह विक्रेय वस्तुओंकी थोड़ी देर दूसरेके आगे मिथ्या प्रशंसा कर उसे अधिक मोल लेकर बेचे और पीछेसे उस बातकी बहादुरी समझकर मन ही मन खुश होवे, एवं पुरानी वस्तुओंको रंग रोगान चढ़ाकर नई कहकर बेचे, प्रथम अच्छा माल दिखाकर पीछे दगाबाजीसे उसमें खराब मिलाकर या सरासर खराब माल देवे । मित्रोंके साथ दगाबाजी करे या कोई अपना विश्वास करके अपने पास धनादिककी धरोहर धर गया हो, उसे विश्वासघात करके हजम कर लेवे, झूठा दस्तावेज बनाकर कोरटमें सावितकर दूसरेको पेंचमें फसावे या कोरटमें जाकर झूठी गवाही दे, व्यापारके अनेक कामोंमें दगाबाजी करके दूसरे लोगोंको सदा काल ठगनेका ही विचार करे । श्री सर्वज्ञ देवके कथन किये हुए विशुद्ध मार्गको छोड़कर मनकल्पित ग्रंथोंकी रचना करके अल्प बुद्धिवाले भोले भाले जीवोंको भ्रममें डालकर अपना मत