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छठा गुणस्थान.
(५३) स्थिति करता है और यदि अन्तर्मुहूर्त कालसे प्रमाद युक्तावस्थामें उपरान्त काल हो जाय तो तब वह प्रमत्त गुणस्थानसे भी नीचे गिर जाता है । जब अन्तमुहूर्त कालसे अधिक समय तक प्रमाद रहित अवस्थामें स्थिति होती है, तब वह महात्मा ऊपरके सातवें अप्रमत्त गुणस्थानमें चढ़ जाता है, किन्तु छठे गुणस्थानमें सदाकाल स्थित नहीं रहता।
प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें ध्यानकी संभावना है, अतएव अब ध्यानका खरूप लिखते हैं
अस्तित्वानो कषायाणामत्रार्तस्यैव मुख्यता । आज्ञाद्यालम्बनोपेतधर्मध्यानस्यगौणता ॥ २८ ॥
श्लोकार्थ-इस प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें नोकषायोंका अस्तित्व होनेसे आर्त ध्यानकी ही मुख्यता है और आज्ञा आदि आलंबनों सहित धर्म ध्यानकी गौणता है ॥
(आर्तध्यान ). व्याख्या-संसार अटवीमें तमाम सकर्मी जीव अनादिकालसे परिभ्रमण करते हैं और जीवोंको परिभ्रमण करानेवाले केवल कर्म ही हैं । कर्म शुभ और अशुभ दो प्रकारके होते हैं । किसी समय जीवको शुभ कर्मका अधिक संयोग और अशुभ कर्मका अधिक वियोग हो जाता है । जब जीवको अशुभ कर्मका अधिक वियोग और शुभ कर्मका अधिक संयोग होता है, तब उन शुभ कर्मकी प्रकृतियोंको यह जीव देवलोकादि शुभ गतियोंमें भोगता है और जब शुभ कर्मका अधिक वियोग होकर अशुभ कर्मका अधिक संयोग होता है, तब यह जीव उन अशुभ (पाप) कर्म प्रकृतियोंको नरकादि अशुभ गतियोंमें जा कर भोगता है । पूर्व