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पाँचवाँ गुणस्थान. (३९) अर्थ-एक मुहूर्तपर्यन्त सावध याने पापसहित व्यापारका परित्यागरूप प्रथम सामायिक नामक शिक्षाव्रत समताधारी मनुष्योंको होता है । सामायिकका अर्थ इस तरह समझना कि रागद्वेष रहितताको सम कहते हैं, अर्थात् राग द्वेष के अन्दर समानता भाव धारण करना, उसे सम कहते हैं । उस समभावमें आय नाम जो ज्ञानादि गुणकी प्राप्ति होती है, उसे सामायिक कहते हैं । अथवा सम, याने प्रतिक्षण ज्ञानादिक अपूर्व पर्याय जोकि अपने प्रभावसे चिन्तामणि तथा कल्पतरुके प्रभावका भी तिरस्कार करता है और जो निरुपम सुखका हेतु भूत है, उसके साथ जिसकी योजना हो, अर्थात् उस ज्ञानादिके साथ जिसका संबन्ध हो उसे समाय कहते हैं और वह समाय जिसका प्रयोजन है, उसे सामायिक कहते हैं । यह पूर्वोक्त सामायिक मन-वचन-काया संबन्धि सावध व्यापारके परित्याग विना नहीं हो सकता । सामायिक व्रतके मुख्य तीन भेद हैं, जिसमें प्रथम सम्यक्त्व सामायिक है, दूसरा श्रुतसमायिक और तीसरा चारित्रसामायिक है । उसमें भी चारित्रसामायिक दो प्रकारका है, एक तो गृहस्थ संबन्धी और दूसरा अनागारिक, याने मुनिसंबन्धी। ___ पहला जो सम्यक्त्व सामायिक है, वह उपशमादि भेदोंसे पाँच प्रकारका है । दूसरा श्रुतसामायिक द्वादशांगीरूप है, तीसरा दो प्रकारका जो चारित्र सामायिक है, वह एक तो देशविरति सामायिक और दूसरा सर्वविरति,याने सर्व सावद्यकापरित्याग तथा पंच महाव्रतरूप है। पूर्वोक्त सर्वविरति चारित्र सामायिक सर्व द्रव्यविषयिक होता है । शास्त्रमें भी कहा है-पढमंमि सब्बजीवा, बीए चरमेय सब्बदब्बाइं। सेसामहब्बया खलु, तदिक्क देसण दब्बाण।।१॥ अर्थ-पहले व्रतमें सर्व जीवद्रव्य आता है, दूसरे तथा पाँचमें