________________
(२६) गुणस्थानकमारोह. यको विशेष जाननेकी जिज्ञासा हो, तो श्रावक तभंग प्रकरण तथा धर्मरत्न वगैरह ग्रंथावलोकन करके अपनी इच्छा पूर्ण कर लेवे । ___गृहस्थ श्रावकको मुनिसे सवा विश्वा (सवावसा) दया होती है । सो इस प्रकार समझना-सूक्ष्म तथा स्थूल, ये दो प्रकारके जीव संकल्प और आरंभसे हणाये जाते हैं । उन जीवोंमें भी दो प्रकार होते हैं, एक तो सापराधि और दूसरे निरापराधि । उन जीवोंकी हिंसा दो तरहसे होती है, एक तो सापेक्षतया और दूसरे निरपेक्षतया । ऊपर कथन किये हुवे स्थूल शब्दसे त्रसजीव समझने और सूक्ष्म शब्दसे एकेन्द्रियादि जीव समझने । सूक्ष्म जीवोंके स्थावरादि पाँच भेद होते हैं, परन्तु जो सूक्ष्म नामकर्मके उदयसे सर्व लेाकाकाशमें ठसाठस भरे हुवे हैं, उन जीवोंको यहाँ पर लेनेकी जरूरत नहीं, क्योंकि उन्हें शस्त्र अस्रादिसे कोई नहीं हण सकता, किसी प्रकारकी तकलीफ नहीं दे सकता, वे अपनी आयुको पूर्ण करके ही मृत्युको प्राप्त होते हैं । अतएव उन जीवों संबन्धि अविरति जन्य पापकर्म तो लगता ही है, किन्तु हिंसा जन्य पापकर्म नहीं लगता, इस लिये उन जीवोंकी हिंसाका अभाव होनेसे उन्हें यहाँ पर गिननेकी आवश्यक्ता नहीं । पूर्वोक्त सूक्ष्म तथा स्थूल दोनों ही प्रकारके जीवोंकी हिंसासे मुनि लोग सर्वथा विमुक्त होते हैं, अतएव उन्हें बीस विश्वा दया होती है । गृहस्थको तो केवल स्थूल जीवोंकी ही हिंसासे निवृत्ति होती है, क्योंकि गृहस्थको सदा काल पृथिवी जल वनस्पति अग्नि वगैरहका आरंभ समारंभ करना पड़ता है, अर्थात् पाँच स्थावरकी हिंसा तो सदैव गृहस्थके पीछे लगी हुई है । सूक्ष्म जीवों संबन्धि हिंसासे गृहस्थी नहीं बच सकता, इस लिये दश विश्वा तो इस तरह ही उड़ जाती है । अब रही स्थल जीवोंकी हिंसा, वह भी