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(३०) गुणस्थानक्रमारोह. किसीको आक्रोशसे या तिरस्कारसे मार्मिक वचन बोलना या मूर्ख बेवकूफ कह कर उसके दिलको दुखाना। इत्यादि हृदयको वेधवेवाले वचनरूप असत्यसे जीवोंको नरकादिके दुःखोंका अनुभव करना पड़ता है। श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराजने फरमाया है कि जो मनुष्य मृषावादी होता है, उसे काल करके निगोद, विर्यच तथा नरकमें जाकर पैदा होना पड़ता है और जहाँ पर अनेक प्रकारके दुःखोंका अनुभव करना पड़ता है।
चोरी करनेवाले तथा परस्त्री भोगनेवाले जीवको पापसे मुक्त होनेके अनेक उपाय हैं, किन्तु जो मनुष्य असत्यवादी है, उसे असत्य जन्य पापसे मुक्त होनेके लिये कोई उपाय नहीं। अतएव सुज्ञ पुरुषोंको असत्यका स्वरूप समझ कर उसका अवश्य परित्याग करना चाहिये । पूर्वोक्त प्रकारसे दूसरे अणुव्रतका स्वरूप समझना। अब तीसरा अदत्तादान विरमण नामक अणुव्रत कहते हैं। ___ अदत्तादान शास्रमें चार प्रकारका फरमाया है-तदाधं स्वामिनादत्तं जीवादत्तं तथा परम् । तृतीयंतु जिनादत्तं, गुर्वदत्तं तुरीयकम् ॥१॥ अर्थ-पहला स्वामी अदत्त है, स्वामी अदत्तका मतलब यह है कि मालिककी रजा विना वस्तुको ग्रहण करना, इसे स्वामी अदत्त कहते हैं। दूसरा जीव अदत्त है। वृक्षादिके फलफूल तथा पत्रादिकको ग्रहण करना, इसे जीवादत्त कहते हैं, क्योंकि उस फल फूलादिके अन्दर जो जीव हैं, उन्होंने अपने माण ग्रहण करनेकी रजा नहीं दी है । इस लिये वह जीव अदत्त कहा जाता है । गृहस्थ द्वारा दिया हुआ आधाकर्मी आहार (साधुके लिये बनाया हुआ अन्नपान ) यदि साधु विशेष कारण विना ग्रहण करे तो वह तीर्थंकरकी आज्ञा न होनेसे तीर्थकर अदत्त कहा जाता है, इसी तरह यदि श्रावक लोग अभक्ष