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गुणस्थानक्रमारोह. सवा विश्वा दया कही है। इस प्रकार प्रथम व्रतका स्वरूप समझना॥
दूसरा व्रत मृषावाद विरमण नामक है, मृषावादके सूक्ष्म और बादर, ये दो भेद होते हैं। जिसमें तीब्र संकल्प जन्य स्थूल मृषावाद और हास्यादि जन्य सूक्ष्म मृषावाद समझना । सूक्ष्म मृषावादमें श्रावकको यतना पूर्वक वर्तन करना चाहिये, किन्तु स्थूल मृषावादका तो अवश्य ही परित्याग करना चाहिये, क्योंकि स्थूल मृषावादसे लौकिकमें भी अपकीर्ति होती है, तथा इससे कभी कभी मनुष्यको महाकष्ट भी उठाना पड़ता है। विशेषतः पृथ्वी, कन्या, गाय, धनकी स्थापन (किसीकी धरोहर ) तथा किसीकी झूठी साक्षी (गवाही) देना, ये पाँच स्थूल मृषावाद कहे जाते हैं । कन्या संबन्धि स्थूल मृषावाद इसे कहते हैं-कन्या अच्छी हो निरोगा हो तथापि किसी द्वेष वश होकर उसे विषकन्यातया दूसरोंमें प्रगट करना। कन्या रोगीष्टा हो या खराब चाल चलनवाली हो तथापि किसी लोभ वश किसी अच्छे घरानेमें उसकी शादी करनेके लिये, उसे सुशीला या निरोगातया लोगोंमें प्रसिद्ध करे । एवं सुरूपाको कुरूपा, कुरूपाको सुरूपातया स्वार्थ वश लोगोंमें ख्यापन करे । इत्यादि कन्या संबन्धि स्थूल मृषावाद समझना । इतना और भी समझ लेना कि स्थूल असत्यमें दास दासी वगैरह सर्व द्विपद संबन्धि असत्यका समावेश हो जाता है। . अल्प दूध देनेवाली गायको अधिक दूध देनेवाली कह कर बेचना, एवं सर्व चतुष्पद संबन्धि समझ लेना, इसे गाय संबन्धि स्थूल मृषावाद कहते हैं। - इसी तरह भूमि तथा दूसरेकी धरोहर वगेरह संबन्धि समझ लेना । असत्य (मृषावाद) चार प्रकारका होता है। उस चार