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(१८) गुणस्थानक्रमारोह. सूर्यास्त होनेका समय हो गया। इस लिए वे तीनों ही जने मार्ग तह करनेके लिए जलदी जलदी जा रहे हैं । दैवयोग उस अटवीके भयानक मार्गमें उन तीनों जनोंको दो चोर मिल गये। सामने दो चोरोंको देखकर उन तीनों मुसाफरोंका हृदय घभरा उठा और इस वक्त क्या करना चाहिये ? इस विचारमें पड़ गये। इस समय उन तीन मुसाफरोंमेंसे एक मुसाफर तो भीरु होनेके कारण अत्यन्त भयभीत हो कर पीछे भाग गया। एकको उन चोरोंने पकड़ लिया, किन्तु तीसरा कुछ जबरदस्त था अतएव वह उन चोरोंसे लड़ने लगा । अन्तमें वह तीसरा मुसाफर दोनों चोरोंको मार पीट कर अपने इच्छित स्थानपर पहुँच गया। इस दृष्टान्तका उपनय, इस प्रकार समझना-उन तीन मुसाफरों के समान संसारी जीव हैं, भयंकर अटवीके समान संसार है, दु. लैध्य अटवीमार्गके समान ग्रंथी समझना, लंबे रास्तेके समान जीवकी कर्मस्थिति है,दो चोरोंके समान राग और द्वेष समझना, और जो मुसाफरोंके जानेका इच्छित स्थान या नगर है, वह सम्यक्त्व। जो मनुष्य प्रथम चोरोंको देखकर ही भयभीत होकर पीछे लौट गया है, उस जीवकी संसारमें परिभ्रमण करनेकी अभी स्थिति बहुत है, अर्थात् उस जीवको भारी कर्मी समझना चाहिये । जिस मनुष्यको चोरोंने पकड़ लिया है, उसके समान रागद्वेष ग्रसित संसारमें परिभ्रमण करनेवाला भव्य प्राणी समझना और जो मनुष्य चोरोंसे न डरकर, उन्हें मार पीटकर अपने इच्छित स्थानपर पहुँच गया है, वह सम्यग्दृष्टी जीव समझना, अर्थात् उसके समान सम्यग्दृष्टी जीव है। इस दृष्टान्तके उपनयसे ग्रंथीभेदन सहित तीनों करणका स्वरूप भली भाँति समझा जा सकता है। __यथाप्रवृत्तिकरण करके जीव ग्रंथी देशको प्राप्त करता है और अपूर्वकरण करके ग्रंथीको भेदन करता है । इसके बाद