________________
(२२) गुणस्थानक्रमारोह. कहते हैं। इस पूर्वोक्त देशविरति पंचम गुणस्थानकी उस स्थिति देशऊना याने आठ वर्ष कम पूर्वकरोड़की है। भाष्यकार महात्मा भी फरमाते हैं-पडावली सास्वादनं समधिकत्रयस्त्रिं शत्सागराणि चतुर्थम् । देशोन पूर्वकोटी पंचमकं त्रयोदशं च पुनः॥१॥ अर्थ-छ: आवली कालकी स्थिति, सास्वादन गुणस्थानकी है, कुछ अधिक तेतीस सागरोपमकी स्थिति चौथे गुणस्थानकी है, देश ऊना पूर्वकोटी पाँचवें गुणस्थान तथा तेरहवें गुणस्थानकी है। ____अब देशविरति गुणस्थानके अन्दर ध्यानकी संभावना
कहते हैं
आतरौद्रं भवेदत्र मंदं धयं तु मध्यमम् । षट्कर्म प्रतिमाश्राद्ध व्रतपालनसंभवम् ॥२५॥
श्लोकार्थ-इस गुणस्थानमें आर्तरौद्र ध्यान मन्द होते हैं और धर्मध्यान मध्यम होता है, तथा छः कृत्य, ग्यारह प्रतिमा, श्रावकके व्रत पालन करनेकी संभावना होती है। ___व्याख्या-देशविरति गुणस्थानमें आर्त रौद्र तथा धर्मध्यान, ये तीन ध्यान होते हैं । शुक्ल ध्यानकी संभावना सातवें गुणस्थानसे होती है, इसलिये उसके भेद प्रभेद आगे चलकर क्षपकश्रेणीमें बतावेंगे। आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, तथा शुक्लध्यान, इन चारों ध्यानोंके एक एकके चार चार पाये होते हैं । आर्तध्यानके चार पायोंके नाम-१ अनिष्टयोगार्ग, २ इष्टवियोगान, ३ रोगात, ४ निदानात, ये चार पाये आतध्यानके समझने । अब रौद्रध्यानके चार पाये बताते हैं, १ हिंसानन्दरौद्र, २ मृषावादानन्दरौद्र, ३ चौर्यानन्दरौद्र, ४ संरक्षणानन्दरौद्र । ये दोनों आर्च और रौद्रध्यान पाँचवें गुणस्थानमें मन्दतया होते हैं और