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तीसरा मुणस्थान.
और सम्यक्त्वके मिलजानेसे एक जुदा ही भावान्तर उत्पन्न होजाता है, और उसे ही मिश्रगुणस्थान कहते हैं।
मिश्रगुणस्थानमें रहा हुआ जीव जो काम नहीं करता सो कहते हैं
आयुर्वधाति नोजीवो, मिश्रस्थो म्रियते न वा। सदृष्टिर्वा कुदृष्टिा, भूत्वा मरणमश्नुते ॥ १६ ॥
श्लोकार्थ-मिश्रगुणस्थानस्थजीव आयुका बन्ध नहीं करता और ना ही काल करता, सम्यक्त्व प्राप्तकरके या मिथ्यात्व प्राप्त करके काल करता है।
व्याख्या-मिश्रगुणस्थानमें रहा हुआ प्राणी परभवसंबन्धि आयु नहीं बाँध सकता और ना ही मिश्रमें काल करता। किन्तु सम्यग्दृष्टी होकर या मिथ्यादृष्टी होकर ही काल धर्मको प्राप्त होता है। अर्थात् पूर्व अवस्था में यदि मिथ्यात्वमें रहकर आयु बाँधा हो तो मिथ्यादृष्टी होकर और यदि सम्यक्त्वमें स्थितरह कर आयु बाँथा हो तो सम्यग्दृष्टी होकर मृत्युको प्राप्त होता है। मिश्रगुणस्थानके समानही क्षीणमोह बारहवें तथा सयोगिकेवलि तेरहवें गुणस्थानमें भी जीव काल नहीं करता। जिन जिन गुणस्थानों में जीव काल करता है और जिन गुणस्थानोंको परभवमें साथ लेजाता है, उन्हें नामपूर्वक कहते हैं । १ मिथ्यात्व २ सास्वादन ४ अविरति ५ देशविरति ६ प्रमत्तश्रमण ७ अप्रमत्त ८ अपूर्वकरण ९ अनिवृत्तिबादर १० सूक्ष्मसंपराय ११ उपशान्तमौह १४ अयोगिकेवलि । इन ग्यारह गुणस्थानों में जीव काल करता है, अर्थात इन पूर्वोक्त ग्यारह गुणस्थानों में से किसी भी एक गुणस्थानमें स्थित होकर काल करता है । मिथ्यात्वगुणस्थान, सास्वादन गुणस्थान तथा