Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Purvacharya
Publisher: Indrachand Agarchand Seth
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श्रीगौतमपृच्छा । ॥२॥
प्रश्नमूलगाथा॥
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व्याख्याः -स एव जीवः पुरुषः, स एव जीवः स्त्री, स एव जीवो नपुंसको भवति, तथा स एवाऽल्पायुर्दीर्घायुरभोगी सभोगी च भवति ॥ ३॥
गाथा:-केण व सुहवो (१२) होह, केण व कम्मेण दहवो (१३) होइ । केण व मेहाजुत्तो (१४) दुम्मेहो (१५) कहं नरो होई ॥४॥
व्याख्याः -हे भगवन् ! केन कर्मणा स सुभागी भवति ? वा केन कर्मणा दुर्भागी भवति ? केन कर्मणा बुद्धिमान् भवति ? कथं च स नरो दुर्मेधा भवति ॥४॥
गाथा:-कह पंडिओ (१६) अ पुरिसो, केण व कम्मेण होइ मुक्खत्तं (१७)। कह धीरू (१८) कह भीरू (१९), कह विज्जा निष्फला (२०) सफला (२१) ॥५॥
व्याख्या:-हे भगवन् ! पुरुषः कथं पण्डितो भवति ? केन कर्मणा वा तस्य मूर्खत्वं भवति ? कथं स धीरो भवेत् ? कथं च स भीरुभवेत् ? कथं तस्य विद्या निष्फला भवति ? कथं च तस्य सफला विद्या जायते ? ॥५॥
गाथा:-केण विणस्सइ अत्थो (२२). कह वा मिलइ (२३) कह थिरो (२४) होइ । पुत्तो केण न जीवइ (२५) बहुपुत्तो (२६) केण वा बहिरो (२७)॥६॥
व्याख्याः -केन कर्मणार्थो विनश्यति ? कथं वा स मिलति ? कथं च स्थिरो भवति ? केन कर्मणा पुत्रो न जीवति ? केन कर्मणा वा जनो बधिरो भवति ? ॥६॥
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