Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Purvacharya
Publisher: Indrachand Agarchand Seth
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श्री गौतमपृच्छा । ॥६॥
प्रथमप्रश्नः
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प्रथमप्रश्न:-(श्री गौतमस्वामी पृच्छति-हे प्रभो ! हे कृपासिन्धो ! हे करुणासागर ! हे जनवत्सल !) केन कर्मणा | जीवो इनरकं याति १ (१)
उत्तर:-तस्योत्तरं श्रीमहावीरप्रभुः त्रिभिर्गाथाभिराहजो घायइ सत्ताई, अलियं जपेड़ परधनं हरइ । परदारं चिय वच्चइ, बहुपावपरिग्गहासत्तो ॥१४॥ चंडो माणी कुद्धो,२ मायावी निठुरो खरो पावो। पिसुणो संगहसीलो, साहणं निंदओ अहम्मो॥१५॥ आलप्पालपयंपी, सुदुहबुद्धी य जो कयग्धो य । बहुदुक्खसोगपउरो, मरिउ नरयंमि सो याइ ॥१६॥
१ पञ्चेन्द्रियप्राणिवधकः, बह्वारम्भी, निरनुग्रही, मांसभोजी, स्थिरवैरवान् , रौद्रध्यानी, मिथ्यावी, अनन्तानुबन्धिकषायवान् , कृष्णनीलकापोतलेश्यायुक्तोऽवशेन्द्रियः, मुहुर्मैथुनसेवी मृत्वा नरकं याति । "बवारम्भपरिग्रहत्वं च नारकायुषः" इति तत्त्वार्थे (अ०६ सू०१६)।
२ क्रोधः-यो मित्रं मधुनो विकारकरणे संत्राससम्पादने, सर्पस्य प्रतिबिम्ब द्रङ्गदहने सप्तार्चिषः सोदरः । चैतन्यस्य निषूदने विषतरोः सब्रह्मचारिश्चिरं, स क्रोधः कुशलाभिलाषकुशलैः निर्मूलमुन्मूल्यताम् ।। १॥" अहीं क्रोध उपर चंडदाचार्यनु तथा चंडकौशिकनु दृष्टान्त जाणवु. ____ मानः--" यस्मादाविर्भवति विततिर्दुस्तरापनदीनाम् , यस्मिन् शिष्यभिरुचितगुणग्रामनामापि नास्ति । यश्च व्याप्तं वहति वधधीधूम्यया कोधदावं, तं मानादि परिहर दुरारोहमौचित्यवृत्तेः ॥२॥" अहीं रावणर्नु दृष्टान्त जाणवू.
माया:-" कुशलजननवन्ध्यां सत्यसूर्यास्तसन्ध्यां, कुगतियुवतिमालां मोहमातङ्गशाला । शमकमलहिमानों दुर्यशो राजधानी
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॥६॥
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