Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Purvacharya
Publisher: Indrachand Agarchand Seth
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श्रीगौतम पृच्छा । ॥४ ॥
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गाथाः-गुरुदेवयसाहणं, विणयपरो संतदसणीओ य। न भणेइ किंपि कडुयं, सो पुरिसो जायए
| द्वादशमसुहिओ ॥२८॥
त्रयोदशमव्याख्या:-यः पुरुषो गुरूणां देवानां साधूनां च विनयं करोति, धर्मनिन्दादि किमपि कटुवचनं न ब्रूते एवंविधः
प्रश्नो॥ सजनानां दर्शनीयः स पुरुषः सुखी भवति. सर्वजनवल्लभश्च जायते, राजदेववत् ॥ २८ ॥
त्रयोदशमप्रश्नः-(श्री गौतमस्वामी पृच्छति-" हे कृपासागर! हे दयानिधे ! केन कर्मणा स एव जीवः दुर्भागी (दुःखी) भवति ?" १३)
उत्तरः-( तदा दयालुभंगवान् कथयति-" हे गौतम !)
गाथाः-अगुणोवि गविओवि य, निंदइ धोरे तवस्सिणो कामी। माणी विडंबओ जो, सो जायइ दुही पुरिसो॥२९॥ ___ व्याख्याः -यः पुमान् निर्गुणी अहंकारी२ च भवति, पुनर्यों गुणवतां तपस्विनां च इनिन्दां करोति, पुनर्यः कामी भवति, पुनर्यो जात्यादिमदं करोति, तथाऽन्येषां विडम्बनां च करोति स जीवो मृत्वा दुःखी भवति (भोजदेववत) ॥२९॥
१ नभो भूषा पूषा कमलवनभूषा मधुकरो, वचो भूषा सत्यं वरविभवभूपा वितरणम् । सदो भूषा सूक्तिर्विमलगुणभूषा सुचरितम् , JITE मनो भूषा मैत्री सकलगुणभूवा सुविनयः ॥१॥ शिखरिणी छन्द।।
॥४१॥ २ ज्ञानं पूजां कुलं जाति बलमृद्धि तपो वपुः । अष्टावाश्रित्य मानुष्यं स्मरमाहुर्गतस्मयाः ॥११॥ ३ पारकी निन्दा जो करे, कूडा देवे
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