Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Purvacharya
Publisher: Indrachand Agarchand Seth

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *% श्रीगौतम पृच्छा । ॥४ ॥ %88*220 गाथाः-गुरुदेवयसाहणं, विणयपरो संतदसणीओ य। न भणेइ किंपि कडुयं, सो पुरिसो जायए | द्वादशमसुहिओ ॥२८॥ त्रयोदशमव्याख्या:-यः पुरुषो गुरूणां देवानां साधूनां च विनयं करोति, धर्मनिन्दादि किमपि कटुवचनं न ब्रूते एवंविधः प्रश्नो॥ सजनानां दर्शनीयः स पुरुषः सुखी भवति. सर्वजनवल्लभश्च जायते, राजदेववत् ॥ २८ ॥ त्रयोदशमप्रश्नः-(श्री गौतमस्वामी पृच्छति-" हे कृपासागर! हे दयानिधे ! केन कर्मणा स एव जीवः दुर्भागी (दुःखी) भवति ?" १३) उत्तरः-( तदा दयालुभंगवान् कथयति-" हे गौतम !) गाथाः-अगुणोवि गविओवि य, निंदइ धोरे तवस्सिणो कामी। माणी विडंबओ जो, सो जायइ दुही पुरिसो॥२९॥ ___ व्याख्याः -यः पुमान् निर्गुणी अहंकारी२ च भवति, पुनर्यों गुणवतां तपस्विनां च इनिन्दां करोति, पुनर्यः कामी भवति, पुनर्यो जात्यादिमदं करोति, तथाऽन्येषां विडम्बनां च करोति स जीवो मृत्वा दुःखी भवति (भोजदेववत) ॥२९॥ १ नभो भूषा पूषा कमलवनभूषा मधुकरो, वचो भूषा सत्यं वरविभवभूपा वितरणम् । सदो भूषा सूक्तिर्विमलगुणभूषा सुचरितम् , JITE मनो भूषा मैत्री सकलगुणभूवा सुविनयः ॥१॥ शिखरिणी छन्द।। ॥४१॥ २ ज्ञानं पूजां कुलं जाति बलमृद्धि तपो वपुः । अष्टावाश्रित्य मानुष्यं स्मरमाहुर्गतस्मयाः ॥११॥ ३ पारकी निन्दा जो करे, कूडा देवे * *888 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141