Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Purvacharya
Publisher: Indrachand Agarchand Seth
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भीगौतमपृच्छा ॥ ॥३७॥
दशमएकादशप्रश्नो॥
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अथ दशमैकादशश्नोत्तरमाहदशमप्रश्न:-(श्री गौतमस्वामी पृच्छति-“हे कृपासिन्धो ! हे जनवत्सल ! स एव जीवः कथं अभोगी भवति ?" (१०) उत्तर:-(तदा कृपालुर्भगवान् कथयति-हे गौतम!)
गाथा-देइन नियम सम्म, दिन्नंपि निवारए दित्तं। एएहिं कम्मेहि, भोगेहिं विजिओ होइ ॥ २६ ॥
व्याख्याः -यः पुरुष आत्मनो वस्तु कस्मैचिन्न ददाति, पुनः कस्मैचिद्दत्तं वस्तु पश्चाद् गृह्णाति, पुनरन्येभ्यो १दानदायकान्निवारयति, ईदृशेन कर्मणा जीवो भोगरहितो भवति, धनसारवत् ।
एकादशप्रश्न:-(श्री गौतमस्वामी पृच्छति-" हे भगवन् ! कृपासागर ! प्रभो ! स एव जीवः कथं भोगी भवति ?" (११)
उत्तर:-(तदा दयालुर्भगवान् कथयति-'हे गतम!)
गाथा-सयणासणवत्थं वा, भत्तं पत्तं च पाणयं वावि । हीयेण देइ तुट्ठो, गोयम! भोगी नरो होइ॥२७॥
१"विघ्नकरणमन्तरायस्य" इति तत्त्वार्थे (अध्याय ६ सू०२३) जिनपूजादानभोगादिविघ्नहिसादिप्रवृत्तः इमे अन्तरायकर्माश्रवाः" इति कर्मग्रन्थे ।
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॥३७॥
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