Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Purvacharya
Publisher: Indrachand Agarchand Seth
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श्रीगौतमपृच्छा ॥ ॥३॥
|प्रश्नमूलगाथाः॥
___गाथा:-जचंधो (२८) केण नरो, केण व भुत्तं (२९) न जिज्जइ नरस्स । केण व कुट्ठी (३०) कुज्जो (३१), कम्मेण य केण दासत्तं (३२) ॥७॥
व्याख्या:-हे भगवन् ! केन कर्मणा नरो जात्यन्धो भवति? वा केन कर्मणा तस्य भुक्तमपि न जीयति ? केन कर्मणा वा कुष्ठी कुब्जश्च स भवति ? केन कर्मणा च तस्य दासत्वं भवति ॥७॥
गाथा:-केण दरिदो (३३) पुरिसो, केण कम्मेण ईसरो (३४) होह । केण य रोगी (३५) जायह, रोगविहणो (३५) हवइ केण? ॥८॥
व्याख्या:-केन कर्मणा पुरुषो दरिद्रो भवति ? केन कर्मणा चेश्वरो भवति ? केन च कर्मणा रोगी भवति ? केन कर्मणा च रोगरहितो भवति ? ॥८॥
गाथा:-कह हीणांगो (३७), मूओ (३८), केण व कम्मेण टुंटओ (३९) पंगू (४०)। केण सुरूवो (४१) जायइ, रूवविहणो (४२) हवह केण? ॥९॥ ___व्याख्याः -हे भगवन् ! पुरुषो हीनाङ्गो मूकश्च कथं भवति ? वा केन कर्मणा ढुंटकश्चरणहीनश्च भवति? केन कर्मणा
च स सुरूपो जायते ? रूपविहीनचापि केन कर्मणा भवति ? ॥९॥ | गाथाः-केणवि बहुवेअणत्तो (४३), केण व कम्मेण वेयणविमुक्को (४४) । पंचिंदिओवि (४५) होइ, केणवि एगिदिओ (४६) होइ ॥१०॥
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