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[द्रव्यानुभव-रत्नाकर। ना. अर्थात् वस्तु मात्रको
करण अर्थात् इकट्ठा कौन शब्दके सङ्ग
आप इसका अर्थ क्या हुआ कि इकट्ठा करना, अर्थात व समेटना, अथवा वस्तुके अवयव मात्रको एकी करण... करना है। यह धातुका अर्थ हुआ। अब यहां कौन शब्द होनेसे निश्चय शब्द बनता है सो दिखाते हैं कि, “ निस् ” उपम और चिंत्र' धातु है। इन दोनोंके मिलनेसे निश्चय शब्द बनता। और इसकी निरुक्ति ऐसी है कि निर्णीत अर्थात् जानना तिसको निश्चय कहते हैं। सो इस शब्दको कई प्रकारसे कहते हैं। एक तो वस्तु सद्धावसे, अथवा तदज्ञानसे, जहां बस्तु सद्भावसे कहेंगे उस जगह तो वस्तुके अवयव समेत वस्तुको लेंगे, और जहाँ तदज्ञानसे कहेंगे उस जगह ज्ञानके अवयवों को लेंगे। इसरीतिसे जिसके सङ्गमें निश्चय शब्द लगेगा उस वस्तुके अवयव समेत अर्थात् समुदायको एकत्रित करके मानना अर्थात् एकरूप कहना सो निश्चय है। सो और भी दृष्टान्त देकर दिखाते हैं कि जैसे निश्चय आत्मस्वरूप जानो। तो निश्चय शब्दके कहनेसे आत्माके जो अवयव असंख्यात् प्रदेशोंका समुदाय, अथवा ज्ञानादि चार गुण, और पर्याय आदि समूहको जानना। अर्थात् सबको एकरूप करके जानना उसको निश्चय आत्म जानना कहेंगे। और जिस जगह निश्चय शब्द ज्ञानके संगमें लगाव तो निश्चय ज्ञान ऐसा कहनेसे ज्ञानके जो अवयव उसको निश्चय ज्ञान कहेंगे, अथवा निर्णीत अर्थात् निस्सन्देह ज्ञानको निश्चय. ज्ञान कहेंगे। इसीरीतिसे सब जगह जान लेना।
अव व्यवहार शब्दका अर्थ करते हैं कि इस शब्दमें उपर कितने हैं और धातु कौन है और किस धातु चा उपसर्गसे : शब्द बनता है और उस धातुका अर्थ क्या है। देखो-हुज
धातु हज हरण अर्थात् जुदा करनेमें है। अब इ
पसर्ग
व्यवहार
देखो-हृज ' हरण'
धातु है। यह धातु हज हरण अर्थात् जुदा क पीछे (वि) उपसर्ग और दूसरा ( अव ) उपसर्ग 3
'तुत 'घन' प्रत्यय होनेसे तीनों मिलकर व्यवहार शब्द इसकी निरुक्ति ऐसी है कि, विशेषण अवहर्ति बिना
उपसर्ग और फिर 'हज'
यवहार शब्द बनता है। हर्ति बिनासयेति चित्त
आलक्ष्य अनेन इति व्यवहारः ” इस रातिर
यवहार शब्द सिद्ध
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