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द्रव्यानुभव - रत्नाकर ]
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सहायकारी कारण उपचारसे काल गव्य है, इसलिए चौथा काल द्रव्य कहा ।
( प्रश्न) नवीनपना अथवा जीर्णपना होनेका स्वभावतो पुद्गलमें हैं तो फिर कालको मानना निष्प्रयोजन है, क्योंकि देखो पुद्गल अपने स्वभावसे ही जैसे नवीन पर्यायको धारण करता है तैसे ही जीर्ण पर्याय को व्यय करता है, क्योंकि पुद्गल और जीव यह दो द्रव्य ही परिणामी है, ऐसा श्रीभगवान्ने कहा है कि, जो पूर्व अवस्थाका विनाश और उत्तर अवस्थाका उत्पादन उसीका नाम परिणाम है, इसीलिये पर्यांयका उत्पाद और बिनाशका होना उसोका नाम परिणाम है और द्रव्यका उत्पाद तथा विनाश नहीं होता है इसलिये पुद्गलके विषय परिणामीपना हुआ, सो पुद्गल द्रव्यमें स्वतह ही उत्पाद तथा विनास रूप नवोनपना अथवा जीर्णपता पर्याय में होरहा है, और द्रव्यमें सर्वथा उत्पाद तथा बिनास होवे नहीं, इसलिये काल द्रव्यकी अधिक कल्पना करना गौरव है, इसलिये चोथा दृव्य मानना तुम्हारा ठीक नहीं है ।
(उत्तर) भो देवानुप्रिय अभी तेरेको मुख्य और गौण सद्भूत और असद्भूत कारण और कार्य अपेक्षा की खबर नहीं है, इसलिये तेरेको इतना सन्देह होता हैं, सो तेरा सन्देह निवारण करनेके बास्ते कहते हैं, कि हे भोले भाई यद्यपि नवीनपना और जीर्णपना जो पुद्गल का पर्याय है, सो पुद्गलके विषय है, तथापि उस जगह निमित्त कारण उपचारसे काल द्रव्य लौकिक अपेक्षासे नेमा करके होता है, परन्तु अनियमपनेसे नहीं, क्योंकि देखो चम्पक, अशोक, बेला, चमेली, जुई, गुलाब, मोतिया, केवड़ा, आम, नींबू, नारङ्गी, जामफलादि, बनस्पतिके विषय पुष्प, फलादि काल होनेसे ही आता है और महा हेमकन (शीत ) ( ठण्ड ) मिश्रित शीतल पवनकाल (ऋतु) में ही होती हैं, अथवा मेघ वृष्टि, घन गरजन तथा विद्युत (विजली) झत्कार आदिक कालमें ही होते हैं, तैसे ही ऋतु विभाग, बाल, कुँबार, तथा ran अवस्था, तथा पलीता ( बुढ़ापा ) आदि काल करके ही होता है, इत्यादिक व्यवस्थाके विषय उपचारसे काल द्रव्य ही सहायकारी है,
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