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द्रव्यानुभव - रत्नाकर। ]
"तीति पाचिका" कि जो रसोईके करनेवाला होय उसका नाम पाचक अर्थात पकानेवाला है ।
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और रूढ़ि शब्द उसको कहते हैं कि जैसे हरड, बेहडा, आंवला, इन तीनोंके मिलने से त्रफला कहते हैं । सो यह रूढ़ि शब्द है क्योकि इन तीनोंहीके मिलने से त्रफला होय सो तो नहीं, किन्तु हेरक तीन फल मिलने से त्रफला होता है, परन्तु और कोई तीन फलोंके मिलनेको कोई त्रफला नहीं कहता और इन्हो तीनोंके मिलनेसे सब जगह इसको त्रफला कहते हैं । इसलिये इसका नाम रूढि शब्द है । और भी अनेक बातोंके स्व २ देशमें अनेक तरहके रूढिशब्द हैं। सो रूढि नाम उसका है. कि. धातु प्रत्ययसे तो उस शब्द के अर्थकी प्रतीति न होय, परन्तु लौकिककी रूढि करनेसे उस शब्दके उच्चारण मात्रसे ही उस वस्तुका बोध हो जाय, इसलिये इसको रूढ़ि कहा ॥
अब तीसरा योगरूढ, शब्दका अर्थ करते हैं कि "पंके जायते इति पंकजा” इसका अर्थ ऐसा है कि--पंक नाम है कादा (कीच) का उसमें जो उत्पन्न होय उसका नाम पंकज है, सो उस कादामें कौड़ी, शंखः सीप, वागल, कमलादि अनेक चीज़ उत्पन्न होती है, सो व्युत्पत्तिसे तो सभोंका नाम पंकज होना चाहिये, परन्तु योगिक और रूढि मिलनेसे, पंकज कहनेसे केवल कमलको ही लेते हैं और को नहीं। इसलिये इसको योगारूढ कहा, क्योंकि इसमें यौगिक अर्थात् व्युत्पत्ति और रूढि दोनों मिलकर बस्तुका बोध कराया, इसलिये इसको योगरूढ कहा
इसरीतिसे तो व्याकरण आदिले जो शब्द उच्चारण और भाषा जो कि अनेक देशोंमें अनेक तरहकी बोलियोंसे शब्द उच्चारण होता है, सो उन बोलियोंको जिस २ देशकी भाषा ऊच्चारण होय तिस २ देशके मनुष्य उस भाषाको यथावत समझ सके हैं, सो शब्द मात्र अर्थात् वर्णात्मक उच्चारण करनेसे जो शब्दका बोध होय उसका नाम शब्द है। इस भाषाबर्गनाके बोलनेसे ही सांकेतसे जिनमतमें शब्द नय कहते हैं । सो इस शब्द नयके ही अन्तरगत नामादि चार निक्षेपा हैं, सो वे चारों निक्षपा वस्तुका स्वधर्म है, जो वस्तुका स्वधर्म न माने तो बस्तु
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