Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 194
________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।] [१६३ सरीतिसे घटसे इन्द्रियका संयोग रूप कारण एक है, और विषय घट भी एक है और घटत्व, पृथिवित्व जाति सदा घटमें रहती हैं, तो भी कदाचित् घटत्व-सहित घट मात्रको ज्ञान विषय करता है, परन्तु द्रव्यत्वपशिवित्वादिक जाति और रूपादिक गुणको 'घट हैं' ऐसा ज्ञान विषय करे नहीं, कदाचित् 'पृथिवी है' ऐसा घटका ज्ञान घटमें घटत्वको भी विषय करे नहीं, किन्तु पृथिवित्व और घट तथा पृथिवित्वके सम्बन्ध को विषय करता है ; और कदाचित् पृथिवित्व, घटत्व जाति और तिसका घटमें सम्बन्ध तथा घट इनको विषय करता है। इस प्रकार ज्ञानका भेद सामग्री-भेद विना संभवे नहीं, किन्तु विशेषण ज्ञान रूप सामग्रीका भेद ही ज्ञानके विलक्षणताका हेतु है। क्योंकि देखो-जिस जगह 'घट है' ऐसाज्ञान होता है तिसजगह घट, घटत्व और घटमें घटत्वका समवाय सम्बन्ध भासे है। और जिस जगह 'पृथिवी है ऐसाघटका ज्ञान होता है तिस जगह घट और पृथिवीत्वकासमवाय सम्बन्धभासे है। तिस जगह घटत्व-पृथिवीत्व विशेषण है और घट विशेष्य है, क्यों कि सम्बन्धका प्रतियोगीको विशेषण कहते हैं और सम्बन्धका अनुयोगीको विशेष्य कहते हैं। जिसका सम्बन्ध होता है सो सम्बन्ध का प्रतियोगी है, ओर जिसमें सम्बन्ध होय सो अनुयोगो कहाता हैं। घटत्व, पृथिवित्वका समवाय सम्बन्ध घटमें भासे है, इसलिये घटत्व, पृथिवित्व समवाय सम्बन्धके प्रतियोगीहोनेसे विशेषण है, और सम्बन्धका अनुयोगी घट है इसलिये विशेष्य है। क्योंकि जिस जगह 'दण्डी पुरुष हैं' ऐसा ज्ञान होय तिस जगह दण्डत्व-विशिष्ट दंड संयोग-सम्बन्धसे पुरुषत्व विशिष्ट-पुरुषमें भासे है। तिसकाही काष्ठवाला मनुष्य है' ऐसा ज्ञान होय तिस जगह काष्ठत्व-विशिष्ट दण्ड मनुष्यत्व-विशिष्ट पुरुषमें संयोग सम्बन्धसे भासे है। सोप्रथम ज्ञानमें दण्डत्व-विशिष्ट दण्ड संयोग का प्रतियोगी होनेसे विशेषण है, पुरुषत्व-विशिष्ट पुरुष संयोगका नुयोगी होनेसे विशेष्य है । द्वितीय ज्ञानमें काष्ठत्व-विशिष्ट दण्ड प्रति { और मनुष्यत्व-विशिष्ट पुरुष अनुयोगी है। दोनों ज्ञानमें यद्यपि १एड विशेषण है और मनुष्य विशेष्य है, तथापि प्रथम शानमें तो दण्ड Scanned by CamScanner

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