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'म्यानुभव-रत्नाकर।]
[१६१ हसीना आदिक से उत्पन्न होय, अथवा जो आपसे आप उगे उसको
मज कहते हैं और स्थावर दरख्तादिक को कहते हैं। इस रीति औसार प्रकार से ८४ लाख जीवायोनि को कहते सुनते तो हैं, परन्त
सी(४) लाख जीवायोनि की गणना अन्य मतावलम्बियों के शास्त्रानुसार देखने में नहीं आई, वे लोग केवल नामसे ८४ लाख जीवायोनि कहते हैं। और कितने ही अन्य मतावलम्बी, पृथ्वी, अप, तेयु, वायु इनको चार तत्त्व और आकाश को पाँचवाँ तत्त्व कह कर इन चार को जीव नहीं मानते। इसलिये इस अन्य मतावलम्बियों को पृथ्वी, जल, अग्नि, खर्च करने में भी करुणा नहीं आती। नास्तिक मतवाला तो बिलकुल जीव को मानता ही नहीं है। सो पहले ही इस ग्रन्थ में जीव सिद्ध करने की युक्तियाँ दिखा चुके हैं। अब इन सब झगड़ों को छोड़ कर ८४ लाख जीव योनि का किश्चित् स्वरूप शास्त्रानुसार लिखाते हैं कि ७ लाख तो पृथ्वीकाय की योनि है। योनि नाम उसका है कि एक रीति से जो चीज़ उत्पन्न होय और उसका वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श में फर्क होय। जैसे काली मिट्टी, पीली मिट्टी, सफेद मिट्टी, लाल मिट्टी, कोई चिकनी मिट्टी, कोई बालू (रेत); - अथवा जैसे निमक के भेद है-सैंधालोन, खारीलोन, कालालोन, साँभरलोन, पञ्चभद्रालोन इत्यादि; अथवा जैसे पहाड़ आदि पत्थर हैं उनके भी अनेक भेद हैं, जैसे कि लाल पत्थर, सफेद पत्थर, मकरानेका पत्थर, सङ्गमरमर, स्याहमूसा पत्थर इत्यादि, अथवा हीरा, पन्ना, चुन्नी, लहसनीया, तामड़ा, पुखराज, स्फटिक, आदिक अनेक भेद हैं। इस रीति से पृथ्वी की ७ लाख योनि सर्वज्ञदेव वीतराग ने ज्ञान में देखकर बतलाई हैं। सर्वज्ञ के सिवाय दूसरा कौन इस भेद को खोल सकता है ? इस रीति से ७ लाख योनि अप्काय की भी हैं। देखो कि कोई तो खारा पानी है, कोई मीठा पानी है. कोई तेलिया पानो है, कोई पानी पीने में मीठा परन्तु भारी, अर्थात् बादी बहुत करता है और कोई पीने में मीठा
पतु अन्नादिक बहुत हजम करता है, कोई कूप का पानी है, कोई तालाब का पानी, कोई बावड़ी का। इनमें भी रस, वर्ण स्पर्श, गन्ध
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