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द्रव्यानुभव-रत्नाकर । ]
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अर्थ - निगोद वाला जीव एक मुहूर्त में ६५५३६ भव करता है और उस निगोदवाले जोवका २५६ भावली प्रमाण आयुष्य होता हैं । यह खुल्लक भव अर्थात् छोटेसे छोटा 'भव होता है । भव अर्थात् जन्ममरण । इस निगोद वाले जीवसे कम आयुष्य और किसीका नहीं. होता ।
"अस्थि अनन्ता जीवा जेहिं न पत्तो तसाईपरिणामो J7 उववजन्ति चर्यति य पुणोवि तत्थेव तत्येव ॥१॥",
' अर्थः- निगोदमें ऐसे अनन्त जीव हैं कि जिन्होंने सपना कदापि नहीं पाया । अनन्त काल बीत गया और अनन्तेकाल बीत जावेगा, तथापि वे जीव उसी जगह बारम्बार जन्म मरण करेगा, और उसी जगह बना रहेगा। ऐसे निगोद में अनन्त जीव हैं। उस निगोदके दो भेद हैं, एक तो व्यवहार- राशि, दूसरा अव्यवहार - राशि । व्यवहारराशि उसको कहते हैं कि जिस राशि के जीव निगोद से निकलकर एकेन्द्रिय बादरपना अथवा त्रसपमा प्राप्त करे । और जो जीवने कदापि निगोद से निकलकर बादर एकेन्द्रियपना अथवा त्रसपना नही पाया और अनादिकालसे उसी जगह जन्म-मरण करता है, उसको अन् यवहार राशि कहते हैं। इस व्यबहार - राशिमें से जितने जीव मोक्ष जिस समयमें जाते है उतने ही जीव उस समयमें अव्यवहार-राशिसे व्यवहार- राशि में आते हैं ।
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इसरीतिले निगोदका विचार कहा। उस निगोदके असंख्यात गोले हैं। वे निगोदवाले गोलेके जीव छः दिशाओंका पौद्गलिक आहार पानी लेते हैं । छः दिशाका आहार लेनेवाले सकल गोलें कहलाते हैं । और जो लोकके अन्त प्रदेशमें निगोदके गोले है, उनके जीव तीन दिशाओं का आहार फरसते हैं सो विकल गोले हैं। सूक्ष्म निगोदमें एक साधारण वनस्पति-स्थावरमें ही सूक्ष्म जीव हैं, वे सुक्ष्म सर्व लोकमें भरे हुए हैं । जैसे काजलकी कोपली भरी हुई होती है तैसे ही साधारण वनस्पति सूक्ष्म निगोदवाले जीवसे भरी हुई हैं। और चार स्थावर में ऐसा सूक्ष्मपना नहीं है। उस सूक्ष्म निगोदमें रहनेवाले जीवको अनन्त दुःख है । इस अनन्त दुःख भादिके दृष्टान्त तो अनेक ग्रन्थों में लिये हैं ।
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