Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 219
________________ [द्रयानुभाजक बादर निगोदके जीव सूकि जीवसे भी अनन्त गुण हैं। १८८ गोदके जीव अनंतगुण हैं । मूली, अदरक, गाजर, सरन, जीमिका (फफलन) प्रमुख सा बादर निगोदमें है। इस बादर निगोडी अप्रभाग जितनी जगहमें अनन्त है, वे सिद्ध जीवसे भी अ और सूक्ष्म निगोद इससे भी सूक्ष्म हैं । सो उस सूक्ष्म निगोदका कहते हैं-जितना लोक-आकाशका प्रदेश है उतना ही निगो गोला है और उस एक २ गोलेमें असंख्यात निगोद हैं। जिसमें अनन्त जीवोंका पिंडरूप एक शरीर होय उसका नाम नि. गोद है। सो उस निगोदमें अनन्त जीव हैं । उस अनन्त जीवोंको किश्चित् कल्पना-द्वारा दिखाते हैं कि अतीत काल अर्थात् भूतकालके जितने समय होय उन सर्व समयोंकी गिनती करे और अनागत काल अर्थात् भविष्यत्काल के जितने समय होय वे सब उनके साथ भेला करे, फिर उनको अनन्तगुणा करे, जितना वह अनन्त गुणाकार का फल होय उतने जीव निगोद में हैं। इसलिये एक निगोदमें अनन्त जीव हैं। प्रत्येक संसारी जीवके असंख्यात प्रदेश हैं। उस एकर प्रदेशमें अनन्ती कर्म-वर्गणा लग रही है, और उस.एक २ वर्गणामें अनन्त पुद्गल-परमाणु है, और अनन्त, पुद्गल परमाणु जीवसे लग रहा है, और अनन्तगुण परमाणु जीवसे रहित अर्थात् अलग भी हैं। अब किञ्चित् जीवोंका मान कहते हैं-"गोला इहसकीभूया असंखनिगोयओ हवई गोलो। .. . ......इकिकम्मि निगोए अनन्तजीवा मणेयव्वा ॥१॥" . .. ... अर्थ:- इस लोकमें असंख्यात गोले हैं। उस एक २ गोलेमे अस. ख्यात निगोद हैं, और उस एक २ निगोदमें अनन्त जीव हैं। .. "सत्तरसमहिया कीरइ आणुपाणंमि हुन्ति खुइभवा। सत्तीस सय तिहुअत्तर पाणु पुण एगमुहुत्तम्मि ॥१॥ . भर्थ:-निगोदका जीव मनुष्यके एक श्वास-उच्छ्वार भधिक १७ भव अर्थात् सतरह दफे जन्म-मरण कर पञ्चेदिय मनुष्यके एक मुहुर्तमें ३७७३ श्वास-उच्छ्वास होते है ! “पणसहि सहस्स पण सप य छत्तीसा महत्त खुद्दभदा। . . भावलियाणं वो स ६ सय छप्पना एग खुदभवे ॥१॥ ' श्वास-उच्छ्वास में कुछ Scanned by CamScanner

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