Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 224
________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर। [१६३ दाख, पिस्ता, अंगूर, सेव, बीर, खिन्नी, मौरशिरी, बबूल, बड, पीपल, खेजडा इत्यादि अनेक जाति की प्रत्येक वनस्पति है। इसमें भी एक नाम के अनेक भेद है, जैसे आम एक नाम है, परन्तु इसमें भी लाडुवा, लैंगड़ा, चोचिया, करुआ, मालदेई, हबशी, टेंटी, सिन्दुरिया इत्यादि भेद हैं। उनमें भी रस, वर्ण, स्पर्श, गन्ध के भेद प्रत्यक्ष से बुद्धिमानों की बुद्धि में दिखाते हैं। ऐसे ही नाजादिक में चावल आदि के भी अनेक भेद हैं, कोई तो रायमुनिया, कोई साठी, कोई हंसराज, कोई कमोद, कोई उष्ण इत्यादि। इस रीति से इस प्रत्येक वनस्पति की १० लाख योनि केवलज्ञान से श्री वीतरागदेव को देखने में आई, सों भव्य जीवोंको उपदेश कर बताई, अब साधारण वनस्पति की योनी भी सुनो भाई ! साधारण वनस्पति की १४ लाख योनि हैं। एक शरीर में अनेक जीव इक? होय उसका नाम साधारण है। साधारण में गाजर, मूलो, अदरक, आलू, अरवी, सूरन, सकरकन्द, कसेरू, लहसन, प्याज, कांदा, रताल, सलगम आदि अनेक चीज हैं। जो जमीन के भीतर रहैं और उसी जगह बढ़ें . उसको साधारण वनस्पति कहते है। इसमें भो रस, वर्ण, स्पर्श, गन्ध के भेद होने से १४ लाख जीव उत्पन्न होने की योनि है। इस रीति से स्थावर-कायकी योनि का भेद बताया, सब बावन (५२) लाख जुमले आया, अब उसकी योनि कहने को दिल चोया, इन भेदों को सुनकर जिज्ञासु का दिल हुलसाया, सद्गुरु के उपदेश में ध्यान लगाया, पक्षपात रहित सर्वज्ञ मत का किञ्चित् उपदेश पाया; आत्मार्थियों ने अपने कल्याण के अर्थ अपने हृदय में जमाया, शास्त्रानुसार किञ्चित् हमने भी सुनाया। ... — अब त्रसयोनि के भेद कहते हैं कि त्रस नाम उसका है कि जो जब कष्ट दुःख आकर पड़े तब त्रास पावे, एकाएकी शरीर को न छोड़े और दुःख को उठावे। बेइन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक के सर्व जोव त्रस कहलाते हैं। उनमें दो लाख योनि बेइन्द्रिय (दो इन्द्रियवाले) जीवों को हैं। दो इन्द्रिय में कौड़ी, शङ्ख, जीक, अलसीया, लट, आदि अनेक तरह के जीव होते हैं। सो इनमें भी वर्ण, गन्ध, Scanned by CamScanner

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