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छपता है ! छपता है !! छपता है !!!
प्राकृत भाषाका कोष ।
जिसकी वर्षों से जैन-समाज तथा प्राकृत-भाषाके प्रेमि-गण अति-उत्कंठासे प्रतीक्षा कर रहे थे, वही प्राकृत-भाषाका सुदर और महान् कोष, कई वर्षोंके लगातार भारी परिश्रम और द्रव्य-व्ययसे तय्यार होकर प्रेसमें जा रहा है।
इस कोषमें जैन आगमों के अतिरिक्त प्रसिद्ध २ नाटकों एवं प्राकृत-भाषाके कई महाकाव्यों, जैसे द्वयाश्रय, गौडवध, सेतुबन्ध, सुरसुन्दरीचरित्र, सुपासनाहचरित्र वगैरः से, तथा उपदेश-पद आदि प्राकृत-साहित्य के अनेक दुर्लभ और महान् ग्रन्थोंसे भी शब्द लिये गये हैं।
इस कोषको रचना नवीन-पद्धति के अनुसार की गई है । अकारादि क्रमसे प्राकृत शब्दों का संस्कृत और हिन्दी में अर्थ सुचारुरूपसे लिखा गया है, एवं जो शब्द जहांसे लिया गया है उस ग्रन्थ के नाम और स्थान का भी उल्लेख प्रत्येक शब्दमें किया गया है ।
इस महान् ग्रन्थको पूर्ण छपाकर प्रसिद्ध करनेमें बहुत द्रव्य की आवश्यकता है। प्रार्थना करने पर कई उदार महानुभावों ने कुछ २ सहायताके वचन भी दिये हैं, लेकिन अभी तक जो सहायता मिली है उससे कार्य चल नहीं सक्ता। इससे समग्र जैन बंधुओ तथा प्राकृत के प्रेमि-जनों से सानुरोध प्रार्थना की जाती है कि वे इस पवित्र एवं समयोचित कार्यके लिये हमें द्रव्यकी सहायता करें, ताकि इसको पूर्ण
तया छपनेमें और प्रसिद्ध होनेमें व्यर्थ विलम्ब न हो। Scanned by CamScanner