Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 223
________________ १६२ [ द्रव्यानुभव-रखाकर। आदिक के फर्क (भेद) से सर्वज्ञने ७ सात लाख योनि कही है। से तेउकाय अर्थात् अग्निकाय की भो सात लाख योनि कही है। भी छाना, लकड़ी, पत्थर का कोयला, इन अग्नि का आपस में मन और तेजता का भेद, अथवा सूर्य, विद्युत् (बिजली), इत्यादि अग्नि के अनेक भेद हैं। सो सिवाय सर्वज्ञ के दूसरा कोई नहीं जान सकता। हाँ, अबार वर्तमानकाल में जो लोग अङ्गरेजी, फारसी, अथवा कुतकियों के संग से शास्त्रीय प्रक्रिया और परिभाषा से विमुख होकर विवेकशून्य हुए हैं, उनकी समझ में तो यह कथन निःसन्देह आना मुश्किल है , परन्तु यदि वे लोग निष्पक्षपात होकर सूक्ष्मबुद्धि से पदार्थ-निर्णय का विचार करेंगे तो मन्दत्व और तेजत्व की तरतमता के अनुसार इस बात की सत्यता अवश्य प्रतीत हो जायगी। वर्तमानकाल में इस क्षेत्र में केवलज्ञानी-सर्वज्ञ का प्रत्यक्ष अभाव है। इसलिये आत्मार्थी लोग इस विषय को एकान्त में बैठकर सूक्ष्म बुद्धि से विचार कर अपने अनुभव में लावें, और कुतर्क को बिसरावे, जिस से कल्याण की सूरत जल्दी पावे, तो फिर नर्क निगोद में कभी न जावे, सद्गुरु की कृपा होय तो मोक्ष को पावे, फिर जन्म मरण दुःख सभी छूट जाधे । अस्तु । . . ........ " , "अब इस रीति से ७ लाख वायुकाय को भी योनि है। जैसे कोई तो गर्म हवा है, कोई ठण्डी है, कोई न गर्म है न ठण्डी है, कोई हवा के चलने से आदमी को बिमारी हो जाती है जिसको लकवा कहते हैं, और किसी हवा से शरीर भी फट जाता है, और किसी हवा से शरीर के रोग की निवृत्ति भी हो जाती है इत्यादिक-न्ध, स्य 'आदि के भेदसे वीतरागदेव ने अपने ज्ञान में वायुकाय को योनि के लाख भेद देखकर कहे हैं। इस माफिक इन चार काय के २८ ६ भव हुए। वनस्पति के दो भेद हैं-एक तो प्रत्येक, दूसरी साधारण । 'प्रत्येक को तो १० लाख योनि है। आंब, नीब, नारङ्गी अमल (जामफल); अनार, केला, चमेली, बेला, नीम, इमली, बांस, अशोक पक्ष, तरकारी, भाजी, घास, फूस, बादाम, छुहारे, न "म, इमली, बाँस, ताड, । बादाम, छुहारे, नारियल, Scanned by CamScanner

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