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[द्रव्यानुभष-रत्नाकर।
१६८] है उस दमकको न हलकी कह सक्त हैं, न भारी कह सक्त हैं, इससे ही अगुरुलघु है । अथवा, किसीने अपने हाथको नीचा किया फिर ऊंचा उठा लिया तो उस हाथका नीचा ऊँचा उठना तो उत्पाद और व्यय है.प. न्तुनीचापना और ऊंचापनामेंन हलकापनही है न भारीपन ही अथवाली में जो स्त्रीपना है सो हालको जन्मी हुई कन्यामें भी है, १४३१५ वर्षकी अवस्थामें भी हैं, ३० वर्षको अवस्थामें और बुढ़ापेमें भी हैं । सो वह शरीरव्यक्तिमें तो जन्मसे लेकर आयुपर्यन्त उत्पाद-व्यय समय २ में हो रहा है, परन्तु स्त्रीत्व जातिमें न हलकापन है, न भारीपन है, और स्त्रीपना ध्रुव है तैसे ही अगुरुलघुपर्यायमें समझो। इसरीतिसे पुरुषपना, पशुमें पशुपना गऊमें गऊरना रूप जातिमें तो ध्रुवपना है और व्यक्ति में तो उत्पादव्यय होता रहता है । अथवा, जैसे आम-नीबू आदिक जिस बख्तमें वृक्षके ऊपर लगते हैं, उस वख्त नींबूमें नीलापन अर्थात् हरा रंग तथा कडुवापन और आममें खट्टापन होता है, परन्तु जब वे अपनी उम्र पर आते है, तब नीबू पीला पड़ जाता है और खट्टापनको प्राप्त हो जाता है; आम भी कोई पीले रंगको और कोई सुर्खको, कोईश्यामताको प्राप्त करता है और कोई तो नीला ही बना रहता है, और रस उसका मिष्ट हो जाता है । उसमें नींबूपना तथा आमपना तो पहले जैसा थावैसा ही अंततक बना रहा। परन्तु उस वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्शमें उत्पाद-व्यय होने ही से पर्यायका पलटना हुआ, सो वह पलटनपना तो उत्पाद-व्यय है, परन्तु उसमें जो ध्रुवपना (नीखूपन और आमपन) सो न हलका है न भारी है इससे अगुरुलघु है । शास्त्रमें कहा हैं कि पुद्गल-परमाणु वर्णसे वर्णान्तर, गन्धसे गन्धान्तर रससे रसान्तर, स्पर्शसे स्पर्शान्तरको समय २ में प्राप्त.होते रहते हैं ।
प्रश्नः- आपने जो यह कहा कि पुद्गल-परमाणुओंमें वर्णसे वर्णान्तर, गन्धसे गन्धान्तर इत्यादि उलटफेर हो रहा है। सो उस परमाणु के विषय बहुत लोग शङ्का करते हैं। यद्यपि इसकी चर्चा अनेक तरहसे इस जैन मतमें हैं। तथापि यह बात बद्धिपूर्वक समझनेमें नहीं आती। शास्त्र में लिखा है सो तो ठीक है, परन्तु इस बातको निःसन्देह मानना
बहुत शख्सोंके लिये कठिन हो जाता है। । . ... Scanned by CamScanner