Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 234
________________ द्रव्यानुभव- रत्नाकर । ] [ २०३ जाने तो सही, परन्तु वचनसे कह नहीं सके। इसरीति से भी वर्तमान कालके कुतर्कों का समाधान है। इसमें जो वीतराग सर्वज्ञके वचन से विरोध होय तो मैं समस्त संघके समक्ष अहंतादि छओंकी साक्षीमें मिथ्या दुष्कृत देता हूँ । इस रीति से इस अगुरुलघुकी छः हानी और वृद्धि कही। सो सर्व द्रव्यमें समय २ हो रही है। हानी अर्थात् व्यय होना, वृद्धि अर्थात् ऊपजना । इसरीतिसे उत्पाद और व्यय तो गुण तथा पर्यायमें होता है, और ध्रुवपना द्रव्य में है । जैसे जीवमें जीवपना तो ध्रुव है और ज्ञान, दर्शन चारित्र, वीर्य आदिमें उत्पाद-व्यय हैं, तेसे ही ज्ञान ज्ञापन तो ध्रुव है और ज्ञानमें श यपनेका तो उत्पाद-व्यय है । इस रीतिसे पुद्गल - परमाणुमें परमाणुपना तो ध्रुव है, और उसका जो गुण गन्ध, रस, वर्ण, स्पर्श इनमें उत्पाद-व्यय है, जैसे रूपमें रूपपना तो ध्रुव है और उसमें काला, पीला, नीला, लाल, सफेद में उत्पाद-व्यय है। इसीरीति से सर्व वस्तु जानो, यह द्रव्य का सामान्य स्वभाव मन आनो, और विशेष स्वभावका अन्य शास्त्रोंमें कथन किया है वहांसे पहचानो । मेरी बुद्धि अनुसार मैंने सामान्य स्वभावका भेद कहा। इस रीति से किंचित् द्रव्यका स्वभाव, बुद्धि अनुसार छः सामान्य लक्षण करके कहा । इन छः द्रव्यों का ही शास्त्रमें बहुत विस्तार है । मैंने तो उनका किंचित् बिचार लिखाया है, इस ग्रन्थके समाप्त करनेको मन आया है; अन्त मंगल करनेको भी दिल चाया है; इस ग्रंथको प्रारंभ से समाप्ति तक बराबर नहीं लिखाया है; बीच २ में तीन अन्य ग्रन्थ भी समाप्त कराया है; उनमें इस ग्रन्थकी साक्षी भी दिवाया है; इस ग्रन्थका प्रारंभ और समाप्तिमें अनुमान वर्ष डेढके बिलम्ब आया है; इस शंका निवृत्त करने के वास्ते इतनी तुकोंका सम्बन्ध मिलाया है, इस ग्रन्थको देखकर जिज्ञासुओंका मन हुलसाया है; आत्मार्थियोंको द्रव्यानुयोगका किंचित् भेद बताया है । व्यक्ति-भाव गुण रहित चिदानन्द शक्ति-भाव में धाया है । चिरंजीव यह ग्रन्थ सदा रह जामें आत्मरूप दिखाया है । भानु रूप प्रकाश इसमें किंचित् द्रव्यानुयोग जतलाया है । Scanned by CamScanner

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